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ज्यों था त्यों ठहराया
तीसरा प्रश्नः भगवान, मेरे नमस्कार स्वीकार करें। निवेदन है कि मैं आपके संन्यासियों में गुम हो जाना चाहती हूं। उसके लिए आप मुझे शक्ति दें। मैं संत की बहन हूं--पिंकी!
पिंकी! चल तू तो रंगी! संत की थोड़ी इच्छा तो पूरी हुई। पिंकी को तो पंख लगे। देखा संत महाराज! और अंगुली पकड़ ली मैंने, तो पहुंचा बहुत दूर नहीं। और पहुंचा पकड़ लिया तो फिर...! अब यह पिंकी से शुरुआत हो गई। मैंने कल ही तुमसे कहा था कि मेरे अपने ढंग हैं। तुम घबड़ाओ न। पिंकी तो पकड़ में आ गई। अब तुम्हारे माता-पिता भी पकड़ में आएंगे। संत की बहन है, तो बचेगी भी कितनी देर! तू कहती है, आपके संन्यासियों में गुम हो जाना चाहती हूं। इसके लिए आप मुझे शक्ति दें। जरूर गुम हो जाएगी। गुम हो जाने के लिए शक्ति की कोई जरूरत नहीं। गुम हो जाने के लिए सिर्फ अहंकार को हटा देने की जरूरत है। और अहंकार कोई बड़ी चट्टान नहीं; सिर्फ एक भ्रांति है; सिर्फ एक भ्रम है। जैसे दो और दो को कोई पांच जोड़ रहा हो--और फिर कोई बता दे कि देखो, दो और दो पांच नहीं--दो और दो चार होते हैं! तो कुछ भी तो नहीं करना होता। दो और दो चार हो जाते हैं। बस, ऐसा ही। गणित की भूल हो रही है। हमने अपने को समझा है, हम अलग हैं परमात्मा से--और हम अलग नहीं हैं। लाख समझो कि अलग हो, अलग नहीं हो। लहर समझे कि मैं अलग हूं सागर से; अलग नहीं है। और लहर कहे कि मैं सागर में गुम हो जाना चाहती हूं, तो सागर क्या कहे! सागर हंसेगा। सागर कहेगा, पागल! तू अलग है ही नहीं। बस, अलग होने की भ्रांति छोड़ दे। तू गुम ही है। तू सागर में ही है। जब तू सोच रही है कि अलग है, तब भी सागर में है। कोई उपाय नहीं परमात्मा से दूर होने का। न कभी कोई दूर हुआ है, न कोई कभी दूर हो सकता है। परमात्मा वही है, जिससे हम दूर नहीं हो सकते; जो हमारा स्वभाव है। मगर भ्रांति पाल लेते हैं हम। अगर लहर को भी बुद्धि हो, तो वह भी भ्रांति में पड़ जाएगी। लहर भी सोचने लगेगी कि मैं अलग-थलग। और वह भी तर्क खोज लेगी। क्योंकि और भी तो बहुत लहरें हैं। कोई बड़ी है, कोई छोटी है। हम सब एक कैसे हो सकते हैं? कोई सुंदर, कोई असुंदर; कोई स्त्री, कोई पुरुष। कोई देखो दहाड़ रही, आकाश में उठी हुई--और कोई बिलकुल छोटी-सी लहर है। और कोई गिर रही लहर, और कोई उठ रही लहर--दोनों एक कैसे हो सकती हैं! एक गिर रही, एक उठ रही; एक मर रही, एक जनम रही--दोनों एक कैसे हो सकती हैं! अलग-अलग हैं। साफ है। तर्क के लिए बिलकुल साफ है। लेकिन सागर कोई तर्क मानता है? वहां एक लहर उठ रही, दूसरी गिर रही है। ये जुड़ी हैं। असल में एक का गिरना दूसरे का उठना है। दूसरे के उठने में उस गिरने वाली लहर का हाथ है। वह गिर रही है, इसीलिए दूसरी उठ रही है। दोनों जुड़े हैं। और एक ही सागर में हैं। एक ही सागर की छाती पर नृत्य चल रहा है अनंत लहरों का।
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