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ज्यों था त्यों ठहराया
तो प्रेम तो परिवर्तनशील होगा; लेकिन विवाह थिर है। लेकिन जो थिर है, उससे बंध गए, तो खंभे से बंध गए। अब छटपटाओगे। अब स्वतंत्रता के लिए तड़फोगे। अपनी पत्नी को स्पष्ट करो कि यह प्रेम नहीं है। न कर सको स्पष्ट, उसे यहां लाओ। यह प्रेम नहीं है। यह प्रेम का धोखा है। यह प्रेम के नाम पर प्रेम के कंधे पर रख कर बंदूक चलाना है। यह दुश्मनी है--दोस्ती नहीं। दोस्ती तो सुविधा देगी, अवकाश देगी। अगर सच में किसी से तुम्हारा प्रेम है, तो तुम कभी भी उसकी सीमा का अतिक्रमण न करोगे। तुम उसे मौका दोगे स्वयं होने का। तुम कभी बाधा न डालोगे। अगर पिंकी को उसके मां-बाप प्रेम करते हैं, और वह विवाह नहीं करना चाहती, तो उसके मां-बाप को प्रेम का सबूत देना होगा, कि ठीक है। अगर वह विवाह नहीं करना चाहती, तो कोई चिंता नहीं। उन्हें अपना बोझ--अपनी धारणाओं का बोझ उस पर नहीं थोपना चाहिए। लेकिन आदेश की भाषा अगर समझते हैं वे, तो खतरा है।
और पंजाब में आदेश की भाषा चलती है, इसलिए तो पंजाब भारत को सबसे अच्छे सैनिक देता है। सैनिक का मतलब यह होता है कि वह आदेश मानेगा। सोचेगा नहीं, विचारेगा नहीं-आज्ञाकारी होगा। बोले सो निहाल, सत श्री अकाल! कहीं भी कूद पड़ेगा। कृपाणें खिंच जाएंगी। वाहे गुरु जी की फतह, वाहे गुरु जी का खालसा! मैं दिल्ली से मनाली जा रहा था एक शिविर के लिए। जिस इंपाला गाड़ी में मैं गया, उसका एक सरदार ड्राइवर था। बड़ी गाड़ी और संकरा रास्ता मनाली का। और वर्षा हुई थी, तो फिसलन भरा। और वह घबड़ाने लगा। एक जगह जा कर, तो उसने गाड़ी खड़ी ही कर दी। उसने कहा, अब मैं आगे नहीं जाऊंगा। आगे काफी कीचड़ थी और उसने कहा, यह खतरा मैं नहीं ले सकता। गाड़ी बड़ी है। और कीचड़ काफी है। और संकरा रास्ता है। अगर जरा भी फिसल गई, तो यह नीचे जो गड़ढ है, इसमें समा जाएंगे! बहुत समझाया उसको, मगर पंजाबी समझ से तो मानता नहीं! जितना समझाया, उतना ही वह और ठिठक गया। वह तो बैठ ही गया! गाड़ी से उतर कर नीचे बैठ गया! वह तो संयोग की बात कि मेरी गाड़ी के पीछे ही जीप में पंजाब के पुलिस के आई.जी. वे भी शिविर में भाग लेने आ रहे थे। वे भी आ गए। वे भी सरदार! मैंने उनसे कहा कि क्या करना! इस आदमी ने तो बहुत झंझट खड़ी कर दी! उन्होंने उस सरदार की तरफ देखा और कहा कि क्या खालसे की बदनामी करवा रहा है! अरे सरदार होकर और कीचड़ से डर रहा है! बोले सो निहाल सत श्री अकाल! और वह सरदार अंदर बैठ गया। और गाड़ी उसने चला दी। मैं उसको लाख समझा-समझा कर मर गया, वह नीचे उतर कर बैठा था। जैसे ही सत श्री अकाल और खालसे का नाम आया--कि क्या सरदारों का नाम पानी में इबा देगा मूरख! उसने जवाब ही नहीं दिया। जल्दी से उठा। पंजाबी तो आदेश की भाषा समझता है! आदेश दे दो, तो किरपाण निकल आएं। इधर संत को ही रोकना पड़ता है। कई दफा किरपाण खींचने लगते हैं। अब जैसे संत का और विनोद
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