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ज्यों था त्यों ठहराया
की कटी, मगर ओठों पर प्रार्थना री। मंसूर की कटी, मगर ओठों पर मुस्कुराहट रही। सुकरात की कटी, मगर चारों तरफ धन्यता बरस रही थी। प्रामाणिक व्यक्ति को दुख दिया नहीं जा सकता। हालांकि दुख देने की बहुत कोशिश की जाएगी। जिसने भीतर अपने को खंडों में नहीं तोड़ा है, उसने स्वर्ग बसा ही लिया है। अखंड जो हो गया, वह स्वर्ग हो गया। और जां खंडों में बंटा है, वह नर्क है नर्क और स्वर्ग भौगोलिक नहीं हैं; आंतरिक अवस्थाएं हैं। मेरी एक ही शिक्षा है--अखंड बनो; सहज बनो--और अपनी सहजता को समग्रता से जीओ। इसकी फिक्र ही मत करो कि किसी शास्त्र के अनुकूल बैठती है कि नहीं। क्योंकि जिसने शास्त्र रचा, वह और ढंग का आदमी रहा होगा। उसने शास्त्र अपने हिसाब से रचा है। लेकिन लोग उलटी स्थिति में पड़े हुए हैं। कोई मनु के हिसाब से जी रहा है। कोई महावीर के हिसाब से जी रहा है। कोई बुद्ध के हिसाब से जी रहा है। कोई कृष्ण के हिसाब से जी रहा है। लेकिन ध्यान रखो, तुम्हें अगर कृष्ण के कपड़े नहीं बनते हैं, तो फिर क्या करोगे! हाथ-पैर काटोगे अपने! यहूदी कथा है: एक बिलकुल पागल सम्राट था, उसके पास एक सोने का बिस्तर था; हीरेजवाहरात जड़ा। उसके घर जब भी कोई मेहमान होता...। भूल-चूक से ही लोग होते थे मेहमान। क्योंकि धीरे-धीरे खबर पहुंच गई थी। मगर फिर भी कभी-कभी कोई मेहमान हो जाता। तो वह उसको बिस्तर पर लिटाता। वह पागल आदमी था। अगर वह बिस्तर से लंबा साबित होता, तो वह उसके हाथ-पैर कटवा देता। बिस्तर के बराबर कर के रहता! और अगर छोटा होता, तो उसने पहलवान रख छोड़े थे, वे उसके हाथ-पैर खींच कर उसको लंबा करते! उसमें हाथ-पैर उखड़ जाते। मगर बिस्तर के अनुकूल होना चाहिए! आदमी को बिस्तर के अनुकूल होना चाहिए। आदमी क लिए बिस्तर नहीं है। आदमी बिस्तर के लिए हैं! वह बिलकुल शास्त्रीय बात कह रहा था। ऐसे धार्मिक आदमी था। यही तो सारे धर्म कर रहे हैं--तुम्हें शास्त्रों के अनुसार होना चाहिए! फिर अगर तुम थोड़े लंबे हो, तो काटो। अगर थोड़े छोटे हो, तो खींचो। तुम्हारी जिंदगी मुश्किल में पड़ जाएगी। तुम्हें सिर्फ अपने अनुसार होना है। परमात्मा ने तुम जैसा कोई दूसरा नहीं बनाया। तुम्हें अनूठा बनाया है। इस सौभाग्य को तो समझो। कुछ तो देखो। कुछ तो समझो। कुछ तो पहचानो। परमात्मा ने तुम जैसा कोई आदमी न पहले बनाया है और न फिर बनाएगा। वह दोहराता नहीं। वह प्रत्येक व्यक्ति को अनूठा बनाता है। तुम किसी के अनुसार, किसी ढांचे के अनुसार, जी नहीं सकते हो। जीओगे--मुश्किल में पड़ोगे। जीओगे--कष्ट पाओगे। अपनी ज्योति से जीयो। बुद्ध ने अंतिम क्षण में यही कहा था--अप्प दीपो भव--अपने दीए खुद बनो। मत पूछो...। तो मैं किसी को आचरण नहीं देता। मेरे ऊपर यही सबसे बड़ा लांछन है; सबसे बड़ी आलोचना है--कि मैं अपने संन्यासियों को आचरण नहीं सिखाता।
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