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ज्यों था त्यों ठहराया
मैं उन्हें अपने कपड़े नहीं दे सकता। क्योंकि किसी को छोटे पड़ेंगे, किसी को लंबे पड़ेंगे। किसी को ढीले पड़ेंगे। किसी को चुस्त पड़ेंगे। मैं उन्हें कैसे आचरण दूं! मैं सिर्फ उन्हें भीतर का दीया जलाने की कला सिखाता हूं। फिर वे अपने कपड़े खुद काटें; बनाएं। अपना आचरण खुद निर्मित करें। अपनी रोशनी में जीएं। आचरण नहीं देता मैं--अंतस देता हूं। और तुम अब तक आचरण ही के अनुसार जीए हो। तुम्हारे सब गुरुओं ने तुम्हें अंतस नहीं दिया--आचरण देने की कोशिश की है। वे तुम्हें एक ढर्रा दे देते हैं कि बस, ऐसा करो। चाहे तुम्हें रुचे, चाहे न रुचे। शास्त्र लिखते हैं अकसर बूढ़े लोग। स्वभावतः उन दिनों में बुढ़ापे की बड़ी कीमत थी। अब भी हमारे देश में तो बुढापे की बड़ी कीमत है। बूढा कहे, तो सच ही कहता होगा! अकसर यह होता है कि बूढा बहुत बेईमान हो जाता है। बूढा होते-होते--जीवन भर का अनुभव...! बच्चे सरल होते हैं। बूढे कपटी हो जाते हैं। शास्त्र बूढों ने रचे; वे कपटपूर्ण हैं। उनमें बेईमानी है। उनमें होशियारी है। और फिर कब रचे! किसने रचे! जमाने बीत गए। वह वक्त न रहा। वे लोग न रहे। सब बदल गया। अब तुम उनके अनुसार, जीयोगे, तो कष्ट पाओगे। मंजिल का पता मालूम नहीं, रहबर भी नहीं, साथी भी नहीं जब रह गई मंजिल चार कदम, हम पांव उठाना भूल गए! तुम जब तक उधार जीयोगे, ऐसी ही झंझट में पड़ोगे। ईश्वर भी सामने खड़ा होगा, पहचान न सकोगे। चूंकि तुम एक तसवीर टांगे चल रहे हो। उस तसवीर से मेल खाना चाहिए। और तुम्हारी बात क्या; तुम्हारे बड़े से बड़े तथाकथित श्रद्वेय और पूज्य लोगों की भी यह दशा है। बाबा तुलसीदास के संबंध में यह कहानी है कि जब उनको कृष्ण के मंदिर में ले जाया गया वृंदावन में, तो उन्होंने झुकने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, मैं तो सिर्फ धुनर्धारी राम के सामने झुकता हूं। मैं और किसी के सामने नहीं झुक सकता! मैं तो एक राम को ही जानता हूं। उन्होंने कहा कि जब तक धनुष-बाण नहीं लेऊ हाथ--तुलसी झुके न माथ। मेरा माथा तो तब झुकेगा, जब धनुष-बाण हाथ में लोगे। एक तसवीर टांगे हुए हैं, जैसे धनुष-बाण की कोई बड़ी खूबी हो! जैसे धनुष-बाण का कोई बड़ा राज हो! धनुष-बाण तो सिर्फ हिंसा के प्रतीक हैं। यह बांसुरी कहीं ज्यादा प्रेम का प्रतीक है। और ये बाबा तुलसीदास अंधे मालूम होते हैं! ये बाबा तुलसीदास नहीं हैं--बाबा सूरदास मालूम होते हैं! आंखें हैं इनके पास? ये बांसुरी के सामने नहीं झुक सकते--धनुष-बाण के सामने झुकेंगे। ये कृष्ण को नहीं पहचान सकते। राम को ही पहचानते हैं! एक बांध ली जकड़। परमात्मा अनंत रूपों में प्रकट होता है। और तुम कोई एक रूप पकड़ कर बैठ रहे, तो चूकोगे--चूकते ही जाओगे। जब रह गई मंजिल चार कदम, हम पांव उठाना भूल गए! उधार चलोगे, तो यह हालत होगी। मंजिल सामने खड़ी होगी और तुम पांव उठाना भूल जाओगे।
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