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ज्यों था त्यों ठहराया
तैरना कोई ऐसी कला नहीं है, जो सीखनी होती है ध्यान रखना, तैरने के संबंध में यह बात। इसीलिए तैरना एक दफा जान लिया, तो कोई भूल नहीं सकता; कोई भूल नहीं सकता। पचास साल बाद साठ साल बाद भी तुम दुबारा पानी में उतरो तुम पाओगे, तैरना वैसा का वैसा है; जरा भी नहीं भूल । भूल ही नहीं सकते। क्या बात है?
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और सब बातें तो साठ साल में भूल जाएगी। भूगोल पढ़ा था स्कूल में इतिहास पढ़ा था स्कूल में, न मालूम किन-किन गधों के नाम याद किए थे? आज कुछ याद है? तारीखें क्या-क्या याद कर रखी थीं - - नादिरशाह कब हुआ, और तैमूरलंग कब हुआ, और चंगेजखान कब हुआ! क्या-क्या पागलपन सीखा था! एक-एक तारीख याद थी। आज कोई भी तारीख याद नहीं और कितनी मेहनत से सीखी थी, कैसे रटा था। मगर बात कुछ बनी नहीं, क्योंकि बात स्वाभाविक नहीं थी।
तैरना कोई नहीं भूलता। उसका कारण है। तैरना कुछ स्वाभाविक घटना है। बच्चा मां के पेट में पानी में ही तैरता है; नौ महीने पानी में ही तैरता है। जापान के एक मनोवैज्ञानिक ने छह महीने के बच्चों को तैरना सिखाने में सफलता पा ली। और अब वह तीन महीने के बच्चों को तैरना सिखाने में लगा हुआ है। और वह कहता है कि एक दिन का बच्चा भी तैर सकता है। अभी एक ही दिन की उम्र है उसकी, अभी पैदा ही हुआ है, और तैरना सीख सकता है। वह सिखा लेगा। जब छह महीने का बच्चा सीख लेता है, तीन महीने बच्चा सीखने लगा, तो क्या तकलीफ रही शायद एक दिन का बच्चा और भी जल्दी सीख लेगा, क्योंकि अभी भूला ही नहीं होगा। वह अभी मां के पेट से आया ही है; अभी पानी में तैरता ही रहा है।
फ्रांस का एक दूसरा मनोवैज्ञानिक मां के पेट से बच्चा पैदा होता है तो उसको एकदम से टब में रखता है--गरम पानी में, कुनकुने । और चकित हुआ है यह जान कर कि बच्चा इतना प्रफुल्लित होता है कि जिसका कोई हिसाब नहीं।
तुम यह जान कर हैरान होओगे कि इस मनोवैज्ञानिक ने उस मनोवैज्ञानिक का सहयोगी मेरा संन्यासी है, उस मनोवैज्ञानिक की बेटी मेरी संन्यासिनी है- पहली बार मनुष्य जाति के इतिहास में बच्चे पैदा किए हैं, जो रोते नहीं पैदा होते से, हंसते हैं हजारों बच्चे पैदा करवाए हैं उसने वह दाई का काम करता है। उसने बड़ी नई व्यवस्था की है।
पहला काम कि बच्चे को पैदा होते से ही वह यह करता है कि उसे मां के पेट पर लिटा देता है, उसकी नाल नहीं काटता । साधारणतः पहला काम हम करते हैं कि बच्चे की नाल काटते हैं। वह पहले नाल नहीं काटता, वह पहने बच्चे को मां के पेट पर सुला देता है। क्योंकि वह पेट से ही अभी आया है, इतने जल्दी अभी मत तोड़ो। बाहर से भी मां के पेट पर लिटा देता है और बच्चा रोता नहीं। मां के पेट से उसका ऐसा अंतरंग संबंध है; अभी भीतर से था, अब बाहर से हुआ, मगर अभी मां से जुड़ा है और नाल एकदम से नहीं काटता । जब तक बच्चा सांस लेना शुरू नहीं कर देता, तब तक वह नाल नहीं काटता ।
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