________________
ज्यों था त्यों ठहराया
अथर्व वेद का यह प्यारा सूत्र है: आरोह तमसो ज्योतिः--उठो अंधकार से, चढ़ो ज्योति-रथ पर। आहि रोहेन अमृतं सुखं रक्षं। अरे क्या देर कर रहे हो! सुख में अमृत-रथ पर आरूढ़ हो जाओ। वहीं सुरक्षा है। तुम्हारे भीतर अमृत है। तुम अमृत पुत्र हो। अमृतस्य पुत्राः! लेकिन मृत्यु में भटक गए हो। मृत्यु यानी अंधकार। अमृत अर्थात आलोक। उठो अंधकार से, चढ़ो ज्योति रथ पर। उठो मृत्यु से--अमृत में डूबो। ऐसा इशारा किया राबिया ने। पता नहीं, जिनको इशारा किया था, वे समझ पाए या नहीं। और इतना तो निश्चित है कि सूफियों ने इस पर बहुत टीकाएं की हैं। मगर जिन्होंने टीकाएं की हैं, वे कोई भी नहीं समझते। मैंने टीकाएं देखी हैं। लोग अनुमान लगाते हैं कि शायद! मैं शायद की बात नहीं कर रहा हूं। मैं अनुमान में भरोसा नहीं करता। राबिया मेरी बात से इनकार करे, तो झंझट हो जाए। मैं राबिया की गर्दन पकड़ लूं! क्योंकि मैं कुछ राबिया से भिन्न नहीं। उसने सुई पकड़ा दी; मोमबत्ती पकड़ा दी; बाल पकड़ा दिए। मैं उसकी गर्दन दबा दूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि इनका क्या अर्थ है। यह मैं अपने अनुभव से जानता हूं। मैं भी यही कर रहा हूं। रोज यही कर रहा हूं। तुम्हें दे क्या रहा हूं? यही इशारे: छोड़ो मृत्यु को। तुम पकड़े हो। जोर से पकड़े हो। मृत्यु ने तुम्हें नहीं पकड़ा है। छोड़ो मृत्यु को। जागो। नींद में हो।
और तुम तर्कजाल में पड़े हो! तुम व्यर्थ के ऊहापोह में उलझे हो। तुम कैंची बन गए हो। सुई बनो--जोड़ो। यहां देखते हो: कैसे लोग जुड़ गए हैं! किन-किन धर्मों के, किन-किन देशों के, किन-किन जातियों के, किन-किन रंगों के! करीब-करीब सारी दुनिया से लोग यहां आ गए हैं। सिर्फ रूस से नहीं आ पाए थे, तो दो व्यक्ति--पति और पत्नी--जिन्होंने चुपके-चुपके यहां से संन्यास ले लिया है। संन्यास भी चोरी से भेजना पड़ा है! माला भेजता हूं किसी और देश। और वहां के राजदूत की डाक में वह माला पहुंचती है रूस। वह राजदूत मुझमें उत्सुक हैं। नाम तो नहीं बता सकूगा उनका! और वहां से रूस के संन्यासी...। अब कोई रूस में पचास संन्यासी हैं। नहीं पहन सकते गैरिक वस्त्र। नहीं माला टांग सकते। छिप पर मिलते हैं। ध्यान करते हैं। रूसी में अनुवादित कर ली हैं उन्होंने किताबें। टाइप करकर के एक-दूसरे को बांटते हैं। कोई चार किताबें--न मालूम कितने लोग पढ़ रहे हैं! टेप रूसी में अनुवाद कर-कर के चुपचाप एक हाथ से दूसरे हाथ में जा रहे हैं! लेकिन एक जोड़ा बड़ी मुश्किल से, बड़ी मेहनत के बाद निकल भागा है। वह लंदन पहुंच गया है। कल ही खबर आई है कि हम खुश हैं कि हम रूस के बाहर आ गए हैं। निकलना तो बहुत मुश्किल था, मगर निकल आए। अब हम जल्दी ही पहुंच जाएंगे। लोग कहां-कहां से आ रहे हैं!
Page 57 of 255
http://www.oshoworld.com