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ज्यों था त्यों ठहराया
मैं वर्षों तक उनके घर ठहरता रहा। वर्ष में कम से कम दो बार निश्चित रूप से चांदा उनके घर मेहमान होता रहा। तीन चार दिन; वर्ष में दो बार। एक सप्ताह उन्हें हर वर्ष देता रहा। और वे ऐसे डूबे कि सारे चांदा में लोग चकित थे, क्योंकि उन्होंने बुनियाद रखी मेरे काम की। और मैंने कभी उनसे तो कहा नहीं। लेकिन जब उन्हें लगा कि जो मुझे जरूरत है, उन्होंने तत्क्षण पूरी की। उन्हें लगा कि मुझे एक टाइपिस्ट की और टाइपराइटर की जरूरत है, तो एक टाइपिस्ट और टाइपराइटर भेज दिया। मैंने पूछा, तुम कैसे आए! उन्होंने कहा कि रेखचंद्र पारेख ने भेजा। मैंने कहा, यह भी खूब हुआ। जरूरत मुझे थी। कब तक हाथ से पत्र लिखता रहूं। मुल्क में हजारों प्रेम करने वाले लोग हो गए, मुश्किल खड़ी हो गई। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने...। अब तो इस आश्रम में हजारों टाइपराइटर हैं। मगर पहला टाइपराइटर उनका था। वे बुनियाद रख गए। अब तो इस आश्रम में सैकड़ों टेपरिकार्डर हैं। पहला टेपरिकार्डर उनका था; वे बुनियाद रख गए! अब तो इस आश्रम में शायद भारत का सबसे सुंदर डार्करूम है। और सबसे कीमती और बहुमूल्य कैमरे हैं। मगर पहला कैमरा उनका था। अब तो इस आश्रम के पास दर्जनों कारें हैं। मगर पहली कार उन्होंने मुझे दी थी--पहली कार! वे सब मामले में पहले रहे। चकित था चांदा कि यह आदमी, जिसने कभी किसी को एक पैसा भेंट नहीं किया, इसको हो क्या गया! इसका दिमाग खराब हो गया! और मैंने कभी उनसे एक पैसा मांगा नहीं। और उन्होंने हजारों रुपए बहाए! मुझसे सिर्फ एक बात उन्होंने पूछी--सिर्फ एक--कि मैं कब काम-धंधा छोड़ दूं? मैंने कहा, आपकी उम्र कितनी हुई? उन्होंने कहा, पचास। तब वे पचास के थे। तो मैंने कहा, बस, छोड़ दें। उन्होंने कहा, छोड़ा। छोड़ ही दिया! बड़ा काम-धंधा था। सब यूं का यूं छोड़ दिया। फिर फुरसत थी, इसलिए ये खेत...। अब कुछ काम न बचा, तो दूर जंगल में एक जमीन ले ली और बगीचा लगाने में लग गए कि अब काम-धंधा छोड़ दिया, अब कुछ पौधों के साथ जीना हो जाए। आठ साल पहले माउंट आबू शिविर में साधु हो कर गए। कह कर गए कि आता हूं जल्दी। संन्यस्थ होना है। लेकिन आठ साल लग गए। टालते-टालते रहे। कल पर टालते रहे--और अब विदा हो गए। अब विदाई के इस क्षण में रोशनी खो जाएगी। वे जो सोचते थे, विचारते थे, वे जो सोचते थे--उन्हें दिखाई पड़ने लगा है, वह उन्हें नहीं दिखाई पड़ रहा था। वह मेरे हाथ की लालटेन थी। अब इस अंधेरे में उनको अकेले जाना पड़ा। रास्ते अलग हो गए। काश वे संन्यस्थ हो जाते! काश वे समाधिस्थ हो जाते! तो रोशनी उनकी अपनी होती। हसन को राबिया ने कहा, यह जैसे सिर का बाल मुर्दा है, माना कि शरीर का हिस्सा है-- ऐसा ही पूरा शरीर मुर्दा है--पहचानो या न पहचानो। और जब तक तुम्हें यह समझ में न आए कि पूरा शरीर मुर्दा है, तब तक तुम समझोगे नहीं; तब तक तुम तिलमिलाओगे नहीं; तब तक तुम्हारे जीवन में वह आंधी न आएगी, जो इस खोज पर ले जाए--अमृत की खोज पर।
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