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ज्यों था त्यों ठहराया
चितरंजन, ऐसा ही होगा। ऐसा होना ही चाहिए। तुम्हें ही नहीं, प्रत्येक संन्यासी की यही अभ्यर्थना होनी चाहिए। यही अभ्यर्थना है। और मेरी पूरी चेष्टा यही है कि तुम्हें पिला दूं; जो मुझे मिला है, वह तुम्हें दे दूं। तुम लेने में कंजूसी न करना। तुम झोली फैलाओ और भर लो। मैं देने में कंजूसी नहीं कर रहा हूं। तुम लेने में मत चूको।
और ध्यान रखना, अकसर हम लेने में भी कंजूस हो गए हैं। हम देने में कंजूस हो गए हैं। हमने कंजूसी की भाषा सीख ली, हम लेने में भी कंजूस हो गए हैं। हम छांट-छांट कर लेते हैं--यह ले लें, यह छोड़ दें। नहीं, ऐसे नहीं चलेगा। यह परवानों का ढंग नहीं। पूरा ले लो। पूरा ही लिया जा सकता है, क्योंकि मैं जो कह रहा हूं वह अखंड सत्य है। पंचानबे प्रतिशत से नहीं चलेगा--सौ प्रतिशत। आज इतना ही। दूसरा प्रवचन; दिनांक १२ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
आचार्यो मृत्युः
पहला प्रश्नः भगवान, संत सफियान, अब्दुल वहीद आमरी और हसन बसरी राबिया को मिलने गए। उन्होंने कहा, आप साहिबे-इल्म हैं। कृपा कर हमें कोई सीख दें। राबिया ने सफियान को एक मोमबत्ती, अब्दुल वहीद आमरी को एक सुई और हसन को अपने सिर का एक बाल दिया और वे बोलीं, लो, समझो! भगवान, इस पर सूफी लोग अपना मंतव्य प्रकट करते हैं। प्रभु जी! आप इस पर कुछ कहें कि राबिया ने वे चीजें देकर उन तीनों को क्या सीख दी?
दिनेश भारती! राबिया बहुत इने-गिने रहस्यवादियों में एक है; गौरीशंकर के शिखर की भांति। बुद्ध, महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट और लाओत्सू, जरथुस्त्र--उस कोटि में थोड़ी-सी ही स्त्रियों को रखा जा सकता है। राबिया उनमें अग्रगण्य है। राबिया की सबसे बड़ी खूबी की बात यह है कि उसने अंधेरे की घाटियों में भटकते हुए लोगों से किसी तल पर कोई समझौता नहीं किया। वह अपने शिखर से ही बोली; शिखर की भाषा में ही बोली। इसलिए उसका जीवन बड़ा बेबूझ है। बुद्धि और तर्क से पकड़ में आने वाला नहीं
ऐसी ही यह घटना है। कुछ बातें खयाल में ले लो। दो तरह के बुद्धपुरुष हुए हैं, बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति--फिर स्त्री हो या पुरुष। एक तो वे, जिन्होंने करुणावश आम आदमी की भाषा में कुछ कहा है। लेकिन तब अनिवार्यता उन्हें सत्य
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