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ज्यों था त्यों ठहराया
अगले शिविर में उसके शिष्य बड़ी उत्सुकता से, बड़ी प्रतीक्षा करते रहे। उसने एक पेटी में एक किताब बंद कर के रखवा दी, ताला डलवा दिया, चाबी ले आई। पेटी को उसके शिष्य सिर पर उठा कर लाए और मुझसे कहा कि आप खोल दें। मैंने खोल दिया। कितबिया निकाली। जरा-सी किताब! होंगे दस-पंद्रह पन्ने और छोटी-सी किताब, होगी तीन इंच लंबी, दो इंच चौड़ी। और काले ही पन्ने, सफेद भी नहीं। सब काले! लिखा कुछ भी नहीं। मैंने कहा, भूरिबाई, खूब लिखा तूने! और लोग लिखते हैं, तो थोड़ा-बहुत पन्ने को काला करते हैं, तूने ऐसा लिखा कि सफेद बचने ही नहीं दिया। लिखती गई, लिखती गई, लिखती गई! उसने कहा अब आप ही समझ सकते हो, ये तो समझते ही नहीं। इनको मैं कहती हूं कि देखो। और लोग लिखते हैं, थोड़ा-बहुत लिखते हैं। वे पढ़े-लिखे हैं, थोड़ा ही बहुत लिख सकते हैं। मैं तो गैर-पढ़ी-लिखी हूं। सो मैंने लिख मारी, पूरी ही बात लिख दी! छोड़ी ही नहीं जगह। और किसी और से क्या लिखवाना, सो मैं ही लिखती रही; गूदती रही, गूदती रही, गूदती रही--बिलकुल कि बात को काला कर दिया! अब आप उदघाटन कर दो! मैंने उदघाटन भी कर दिया। उसके शिष्य तो बड़े हैरान हए। मैंने कहा कि यही शास्त्र है। यह शास्त्रों का शास्त्र है! सूफियों के पास एक किताब है, वह कोरी किताब है। उसे वे किताबों की किताब कहते हैं। मगर उसके पन्ने सफेद हैं। भूरिबाई की किताब उससे भी आगे गई। इसके पन्ने काले हैं। सूफियों की वह किताब बड़ी प्रसिद्ध है। परंपरा से गुरु उसको शिष्य को देता रहा है और सूफी उस किताब को खोल कर पढ़ते भी हैं। तुम कहोगे, क्या खाक पढ़ते होंगे? कोरे पन्ने भी पढ़े जा सकते हैं। कोरे पन्ने को देखते रहो, देखते रहो, देखते रहो, देखते रहो, तो धीरेधीरे कोरे हो जाओगे। बोधिधर्म बुद्ध के परम शिष्यों में से एक--समकालिक नहीं, हजार साल बाद हुआ, मगर परम शिष्यों में से एक--नौ वर्ष तक दीवाल की तरफ देखता हुआ बैठा रहा। दीवाल भी थक गई होगी, मगर बोधिधर्म नहीं थका। देखता ही रहा, देखता ही रहा, देखता ही रहा। कोरी दीवाल! मन भी घबड़ा गया होगा। मन भी भाग खड़ा हुआ होगा कि तू बैठा रह, हम चले! जब मन चला गया, तभी बोधिधर्म दीवाल से हटा और बहुत हंसा। कहते हैं, सात दिन बोधिधर्म हंसता ही रहा। लोगों ने पूछा, हआ क्या? उसने कहा कि मैं यह देखता था कि कब तक यह मन टिकता है। अब सफेद दीवाल हो, तो मन कब तक टिके! मन को करने को क्या बचा! न कुछ पढ़ने को है, न कुछ सोचने को है, न विचारने को है। कोरी दीवाल देखते रहे, देखते रहे। नौ साल! अदभुत आदमी था बोधिधर्म! और ऐसे कोरी दीवाल को देखते-देखते परम बुद्धत्व को उपलब्ध हुआ। यह पढ़ा शास्त्र! यह है वेदों का वेद! यह उपनिषदों का सार!
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