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ज्यों था त्यों ठहराया
तुम्हारा किया जा सकता है, बस, पर्यास है। भीड़ के हिस्से रहो भीड़ जैसा चले चलो। भेड़चाल! फिर भीड़ ठीक हो तो ठीक, गलत हो तो गलत--यह तुम्हारी चिंतना नहीं होनी चाहिए।
संस्कृत व्यक्ति मौलिक रूप से विद्रोही होगा। इसलिए मैंने कहा, संस्कृति की परंपरा नहीं होती। संस्कृति बगावत है, प्रतिभा है। निजता है संस्कृति में-- उधार नहीं, बासापन नहीं । संस्कृत व्यक्ति सभ्य होगा एक सीमा तक जरूर सबके साथ चलेगा, जब तक कि उसे अंतरात्मा को बेचना न पड़े। जिस क्षण तुमने कहा कि कुछ ऐसा करो जो उसकी अंतरात्मा की आवाज के विपरीत जाता है, वह बगावत करेगा। बुद्ध ने बगावत की। जीसस ने बगावत की। नानक ने बगावत की कबीर ने बगावत की ये संस्कृति के शिखर हैं।
बुद्ध परंपरा के साथ नहीं चले। यूं कौन होगा जो बुद्ध से ज्यादा सभ्य होगा? लेकिन बुद्ध के पास आंखें हैं, तो उन्हें दिखाई पड़ा कि वेदों में धर्म कहां निन्यानबे प्रतिशत तो कूड़ा-कचरा है, तो बगावत की। कूड़ा-कचरा के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता। जरूर जो एक प्रतिशत सत्य है, उसका समग्र स्वागत है; लेकिन जो निन्यानबे प्रतिशत असत्य है, उसका समग्र विरोध भी ।
महावीर ने बगावत की। कबीर ने बगावत की ।
संस्कृत व्यक्ति समाज नहीं चाहता। समाज सभ्यता से राजी है उतना काफी है। बस, मुखौटा लगा लो, नाटक करते रहो कि भले हो, फिर भीतर-भीतर कुछ भी करते रहो। सभ्य आदमी की राजनीति होती है; संस्कृति की कोई राजनीति नहीं होती। सभ्य आदमी बड़ा कूटनीतिज्ञ होता है कहता कुछ करता कुछ दिखाता कुछ होता कुछ उसकी मुस्कुराहट में जहर छिपा हो सकता है उसके फूलों में कांटे छिपे हो सकते हैं। उसकी हर बात में चालबाजी होगी। उसकी हर बात में बेईमानी होगी। उसके इरादे कुछ और होंगे, वह बताएगा, कुछ और बताएगा वह जो सबसे मेल खाए और इरादे कुछ और होंगे, जिन्हें वह छिपा कर पूरा करता रहेगा; और अच्छे-अच्छे बहाने खोजेगा ।
कल मैंने देखा, एक पत्रकार ने मोरारजी देसाई का इंटरव्यू लिया है। उसने पूछा कि आप प्रधानमंत्री बने हैं, यह आप अपने कर्म से बने हैं? तो उन्होंने कहा कि नहीं, यह तो मेरे भाग्य से मैं बना। यह मेरी नियति थी। यह परमात्मा ने मुझे बनाया !
जिंदगी भर आपाधापी करते रहे, जोड़तोड़ करते रहे, सब तरह की चालबाजियां करते रहे-अब यह आखिरी चालबाजी, कि अब यह मजा भी क्यों न ले लो कि परमात्मा को फिक्र पड़ी है कि मोरारजी देसाई, सत्तर करोड़ लोगों में यह एक आदमी प्रधानमंत्री बने ! और पोल तो वहीं खुल गई, क्योंकि ढोल की पोल ज्यादा दूर नहीं होती। दूसरा ही प्रश्न पत्रकार ने पूछा कि अब परमात्मा ने आपको प्रधानमंत्री बनाया, यह बात समझ में आई यह आपके भाग्य में था, लेकिन फिर आपकी सत्ता उखड़ क्यों गई तो वे भूल गए झूठ कोई कितनी देर याद रखे सत्य को याद नहीं रखना होता झूठ को याद रखना होता है।
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