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( ३ )
२. लक्षण द्वार दूसरे लक्षण द्वार में इन तत्वों के लक्षण बताये हैं :
(१) जीव का लक्षण चेतन होता है। (२) अचेतना लक्षण अजीव का है। (३) जिन कर्मों से जीव को सुख प्राप्त होवे वह
पुण्य कहलाता है। .. (४) जिन कमों से जीव को दुःख प्राप्त होवे वह
पाप कहलाता है। (५) शुभा शुभ कर्मों के आने को आश्रव कहते हैं । (६) आते हुये कर्मों को रोकने की क्रिया का नाम
संवर है। (७) पूर्वोपार्जित कर्मों को क्षय करने की क्रिया को
निर्जरा कहते हैं। (८) जिन क्रियाओं से शुभ अथवा अशुभ कर्मों का
बंध हो वह बन्ध कहलाता है। (९) शुभा शुभ कमों से जीव की मुक्तावस्था का नाम .मोक्ष है।
है
-: द्वितीय द्वार समाप्तम् :