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चौवीस तीर्थकर भगवंतो नी, कोई ज्ञान नी अथवा कोई नमस्कार महामंत्र नी एम स्व इच्छा मुजब स्तुति द्वारा मगलाचरण विध्न निवारण माटे करे छे. तेम अहियां ग्रंथकार उपध्याय भगवंते श्री वर्धमान स्वामी नी स्तुति रूप विध्न निवारणार्थे मंगलाचरण कर्यु छे..
श्री वर्धमान स्वामी नी स्तुति करवामां बे हेतुप्रो रहेला छे. प्रथम हेतु तो ए छे. के हालमां श्री वर्धमान स्वामी ना नाम नु जैन शासन चालतु होवाथी तेरो श्री आपणा नजीकना परम उपकारी छे. बीजो हेतु ए छे के महावीर स्वामीना बदले वर्धमान स्वामीनु नाम लेतां भावनी वृद्धि थाय. एम वर्धमान स्वामि नी स्तुति करवामां बे हेतुप्रो रहेला जणाय छे.
आ संसार मां मनुष्य जन्म, आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल सद्गुरुनो योग, जिन वाणीनुश्रवण आदि जैन शासन नी आराधना ने योग्य धर्म सामग्री पामी, योग्य आत्माओ उच्च संस्कार पामी जैन शासन नी आराधना करी सकल कर्म नो क्षय करी मुक्ति पद ने पामे छे परन्तु जैन शासन नी आराधना ने योग्य सामग्री, उच्च संस्कारो अने सम्यक्त्व विरति विगेरे प्राप्त करवामां जैन आगम नो मुख्य फालो होय छे. ते पण जैन आगम वीतराग अने सर्वज्ञ भगवंतोए बतावेल होवा थी निर्दोष होय छे तेथी निर्दोष सिद्धांत वाला एवं विशेषण ग्रहण कर्यु छे.