Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 13
________________ (२) 'श्रेयांसि बहु विध्नानि'- हमेशां शुभ कार्यो विध्नोथी भरेलां होय छे, एटलेज महापुरुषो कोई पण शुभ कार्य करतां पहेलां पोत पोताना इष्टदेव ने नमस्कार करवा रूप मंगल नो प्रारंभ करे छे, इष्टदेव ने नमस्कार रूप मंगल विध्न नो नाश करवा समर्थ बने छे तेम अहियां पण इष्टदेव ने नमस्कार करवा रूप मंगलाचरण कयुं छे. जैन शासन मां इष्टदेव तरीके अरिहंत भगवंतो अने सिद्ध भगवंतो एम बे गणाय छे, तेमां पण जैन शासन नी स्थापना करवा द्वारा परम उपकारी तरीके अरिहंत भगवंतो गणाय छे. एवा अरिहंत भगवंतो भूतकाल मां अनंत थई गया. वर्तमान कालमां पांच महाविदेह क्षेत्र मां २० अरिहंत भगवंतो मोक्ष मार्ग नो उपदेश प्रापी विचरी रह्या छे अने भविष्य काल मां परण अनंतानत अरिहंत भगवंतो थशे. ते प्रमाणे या भरत क्षेत्र मां पण भूतकाल मां अनंत अरिहंत भगवंतो थई गया छे अने भविष्यकाल मां पण अनंतानंत अरिहंत भगवंतो थशे, तेम पा अवसर्पिणी काल मां श्री ऋषभदेव प्रभु थी मांडी श्री वर्धमान स्वामी पर्यत (श्री महावीर स्वामी)२४ अरिहंतो भगवन्तो थया छे. शास्त्रकार महाराजानो मां पण कोई एक तीर्थं कर भगवंत नी, कोई पांच तीर्थंकर भगवंतोनी, कोई

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