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लेखों का अनुवाद और अवलोकन।
थरादनगर और उसका प्राचीन गौरव
.. थराद जिसको थिराद्र, थिरापद्र या थिरपुर भी कहते हैं, विक्रम सं० १०१ में वसा है । इस नगर का वसानेवाला थिरपालधरु था, जो चौहागवंशीय क्षत्री था। वह भिन्नमाल का रहनेवाला था। वह आशापूरी माता का परम मक्त था। ये दो भाई थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् दोनों माईयों में कलह उत्पन्न हुआ। यह आशापूरी माता की मृति गाड़ी में बिठा कर अपने स्वजनों के सहित भिन्नमाल का त्याग कर उत्तर-गुजरात बनासकांठा की ओर चल पड़ा। इसके साथ में महात्मा मोहनदास और वीरवाडीया कुटुम्ब मी था । अभी जिस स्थल पर थरादनगर वसा है, वहां आते-आते गाड़ी की नाड़( नाण ) टूट गई। उपरोक्त भूमि को पवित्र समझ कर और नार के टूटने को माता