Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 331
________________ (३१८) एक भी जैन घर है। यह पचीस-तीस कृषक झोपडों का ग्राम रह गया है। यही तो काल की विचित्रता है। (३६९) मोटी पावड़ (वाव-बनासकांठा) सं० १४७२ ज्येष्ठकु० ११ सोमवार के दिन श्रीमालज्ञातीय पीता बुहरा माता माल्हीदेवी पिता माता कल्याणार्थ पुत्र हेमा, धूड़ा, धन्ना आदिने श्रीशान्तिनाथचतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छीय श्रीरत्नसिंहसूरि के द्वारा हुई। जेतड़ा (थराद ) के चैत्य में स्थापित मूलनायक की प्रतिमा का लेख घिसा जाने से बिल. कुल वांचा नहीं जाता। इनके दोनों ओर एक पार्श्वनाथ की और दूसरी चन्द्रप्रमप्रभु की प्रतिमायें स्थापित हैं । दोनों पर लेख एक ही व्यक्तियों के हैं। (३७०-३७१) संवत् १८३३ माघशु० शुक्रवार के दिन गेलाग्रामनिवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय समस्तसंघने चन्द्रप्रभस्वामी और पार्श्वनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीविजयजिनेन्द्रसूरि के द्वारा हुई। "Aho Shrut Gyanam"

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