Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 330
________________ (३१७) (३६८) सं० १५१५ आषाढशु०५ के दिन श्रीश्रीमालक्षातीय परीक्षक हंसराज भार्या वरतपाई पुत्र भोजराजने स्वभार्या सोनीबाई, स्वकुटुम्ब के सहित आत्मश्रेयार्थ श्रीविमलनाथजी का (पंचतीर्थी) बिम्ब करवाया, जो पूर्णिमापक्षीय भीसागरतिलकसूरि के उपदेश से प्रतिष्ठित हुआ। लेखाङ्क ३५६ से ३६८ तक की धातुमूर्तियाँ बनासकांठा उत्तरगुजरात के छोटे गाँव एटा के समीपवर्ती एक कृषीकार के क्षेत्र में हल चलाते समय प्रस्तरमय श्री आदिनाथजी की सर्वाङ्गसुन्दर प्रतिमा के सहित भूमि से प्रगट हुई हैं । लुआणा के जैनसंघने वहाँ से लाकर अपने गाँव के सौषशिखरी जिनालय में अष्टाहिक-महोत्सव पूर्वक श्री आदि. नाथप्रभुको मूलनायक के स्थान पर और धातुमायों को ऊपर शिखर में विराजमान की हैं। मूलनायक की प्रतिमा पर लेख नहीं है। परन्तु इनके दहिने और बाये भाग में श्रीविमलनाथजी और श्रीमहावीरस्वामी की प्रतिमायें स्थापित हैं, जो अर्वाचीन हैं और इनके लेख लेखाङ्क ३५४ तथा ३५५ में आ गये हैं। एटा गाँव लुआणा से ३ मील दर थराद की ओर है। किसी समय यहाँ भव्यतम जैनमन्दिर होगा और जनों के विशेष घर मी होंगे। वर्चमान में यहाँ न मन्दिर है और उसका न कुछ चिह है और न "Aho Shrut Gyanam"

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