Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 334
________________ शुद्धिपत्रकम् * अशुद्ध कनुक्रमणिका सकती है पुस्तक में कर्म हैं अतीन्द्र प्राप्रि में सौ. स्त्रियों के वहा मया हैं कम भी होता हैं प्राचीनतम् करानेवाले वर्षों शुद्ध. अनुक्रमणिका सकती हैं पुस्तक में कर्म है धातुप्रतिमा प्राप्ति में सौ सियों के * वहाँ * गया है कम भी होता है प्राचीनतम करानेवाला वर्षों . . * . ~ ~ गुम गुम ~ करते ही है विधर्मी बचानेवाली ~ करते ही विधर्मी बचानेवाली है 3 . . . ~ "Aho Shrut Gyanam"

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