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(ब) ...............शा. सारंग भा० प्रतापदेवी के पुत्र डोसा भार्या लक्ष्मीदेवी, शा. चांपा, शा० डूंगर, सारंग की पुत्रवधू मीखी और कौतुकदेवी, पितृव्य शा० पूंजाने देवगुरु की कृपा से तीन देवकुलिकायें अंचलगच्छीय श्री. मेरुतुजसरि के पट्टधर श्रीजयकीर्तिरि के उपदेश से जीरापल्लीतीर्थचैत्य में करवाई।
शिलालेखों का अध्ययन भी एक कला है। शिलालेखों के अर्थकर्ता ही इस कला की जटिलता को समझ सकते हैं । देवकुलिका नम्बर २८, २९ के लेखों में दुग्धेड़वंशी जिन जिन व्यक्तियों का नामोल्लेख हैं, वह इस ढंग से है कि अधिकांश के पारस्परिक सम्बन्ध का अनम्यस्त पाठकों को सहज पता नहीं पड़ता। लेखाङ्क २९४ के अनुसार लखसी (लक्ष्मणसिंह), भीमल, देवल, सारंग, पूंजा और भजा प्रागण है। इनके मध्य में पुत्र आदि कोई विमाजक शब्द नहीं है। विशिष्ट चिह 'शा' का प्रयोगक्रम भी यही सिद्ध करता है।
लेखाङ्क २९५ (अ) के अनुसार उपरोक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए यही प्रतीत होता है कि डोसा, चांपा, डूंगर, मोखा भ्रातृगण हैं और ये सारंग के पुत्र हैं। (ब) के अनुसार सारंग की पुत्रवधू भीखी और
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