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( २८६) संघविणी राजूदेवी के पुत्र सं० तुकदेव सं० सहदेवने जीराउलीचैत्य में चतुष्किका बनवाई।
(२९३) देवकुलिका नं० २३
xxxxxxx कलवर्यानिवासी श्रीमालज्ञातीय ४० हूंगर मा० चंपादेवी के पुत्र ठ० मोखसिंह, रतनसिंहने जीरापल्लीतीर्थचैत्य में चतुष्किका शिखर बनवाया ।
(२९४) देवकुलिका नं० २८ ___ सं० १४८३ वैशाखकु. १३ गुरुवार के दिन अंचल. मच्छ के श्रीजयकीर्तिरि के उपदेश से ओसवालज्ञातीय दुग्धेड़गोत्र के शाह लक्ष्मण सिंह शा० भीमल शा. देवल शा० सारंग शा० झांझा मा० मेघवाई, शा. पूंजा, भेजा आदिने देवकुलिका करवाई।
(२९५ अ) देवकुलिका नं० २९
सं० १४८३ वैशाखक० १३ गुरुवार के दिन अंचलगच्छ के श्रीजयकीर्तिमरि के उपदेश से दुग्धेड( दुधेडिया) शाखा में शा. लखमसी( लक्ष्मण सिंह) शा० भीमल, शा. देवल, शा. सारंग के पुत्र शा० डोसा मा० लक्ष्मीबाई शा० चांपा, शा० डूंगर, शा० मोखाने देवकुलिका करवाई।
"Aho Shrut Gyanam"