Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 320
________________ ( ३०७ । श्री श्री श्री १००८ श्रीहीरविजयसूरीश्वर गुरुवर को नमस्कार हो । श्रीहेतविजयगणी के चरणयुगल हैं, श्रीमहिमाविजयगणी के चरणयुगल हैं। (३३८) पार्श्वनाथचैत्य के भूगृह की पंचतीर्थी-- . सं० १५०७ माघमास में काबलीग्रामनिवासी श्रे० डूंगर भार्या रूपी पुत्र मालाने स्वभार्या टीबुवाई पुत्र कर्मा हेमा आदि परिजनों के सहित तपागच्छनायक श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीजयचन्द्रसूरि के शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरि के द्वारा श्रीसुमतिनाथ जी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (३३९). सं० १३३४ वैशाखकृ. ५ बुधवार के दिन श्रीजिने. श्वरपरि के शिष्य श्रीजिनप्रबोधरि के द्वारा शा० चोहिल्ल पुत्र शा. वहजलने स्वभाव मूलदेव आदि के साथ अपने और अपने कुटुम्ब के कल्याणार्थ श्रीगौतमस्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई। (३४०-३४१) पवासन की मित्ति के स्तंभ पर 'श्रीजीराउलाजी १ अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंग्रह भा० द्वि० के लेखात ३१० के अनुसर ये आचार्य खरतरगच्छीय है। "Aho Shrut Gyanam"

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