Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 319
________________ (३०६) यह लेख इस संग्रह में सर्वलेखों से प्राचीनतम है। परन्तु दुःख है कि यह अति छोटा और वह भी अपूर्ण और अस्पष्ट है । गच्छ, आचार्य, गोत्र, वंश किसीका भी इसमें उल्लेख नहीं है। (३३४) भीलड़ियातीर्थ में धातुपंचतीर्थी सं० १३६७ वैशाखशु० ९ के दिन प्राग्वाटज्ञातीय श्रे. तिहुअणसिंह भार्या हांसलदेवी के कल्याणार्थ. पुत्र श्रे० सोमाने श्रीआदिनाथजी का बिम्ब मडाहडियगच्छ के श्रीचन्द्रसिंहसरि के शिष्य श्रीरविकरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। सं० १५३५ माघक० ९ शनिवार के दिन कुतुबपुरनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय व्य. काजा मार्या देवीबाई पुत्र मोलाने स्वपत्नी राजुलबाई पुत्र हांसा, स्थ, आदि परिजनों के सहित अपने पिता माता के कल्याणार्थ तपागच्छ के श्रीलक्ष्मीसागरपरि के द्वारा श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (३३६-३३७) चरणयुगल का लेख सं० १८३७ पौषक० १३ सोमवार के दिन भट्टारक "Aho Shrut Gyanam"

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