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काछोली (सिरोही) मूलनायक के परिकर का___ सं० १३४३ में कलिका-पार्थनाथमन्दिर के गोष्ठिक (कार्यवाहक) श्रेष्ठि श्रीपाल भार्या सिरियादेवी पुत्र नरदेव,
० बोड़ा भार्यावीत्रदेवी पुत्र श्रे० रोकदेव,मंत्री देवसिंह,महं० सलखा पुत्र गला, श्रे० कर्मा भार्या अनुपमादेवी पुत्र महं० अजयसिंहने श्रे० भावखीदा और मोहन के साथ श्रे० जगसिंह पुत्र श्रे० धनसिंह, शंभुपाल, श्रे० पूनड पुत्र धीरा, श्रे० सोहड़ पुत्र विजयसिंह, श्रे० झांझण पुत्र रामसिंह आदि गोष्ठिकों के सहित माता पिता के कल्याणार्थ श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का हार परिकर सहित कच्छोलीगच्छ के गुरुओं के उपदेश से करवाया।
कच्छोली, कंछोली और कछोलीवाल गच्छ का परिचय अवश्य ग्रन्थों एवं लेखों में मिलता हैं, परन्तु मुनिमेरु (चन्द्र, विजय, सुन्दर) नामक कोई आचार्य या साधु तेरहवीं शतान्दि में हुए हैं, कोई पता नहीं लगता।
पिंडवाडा (सिरोही) महावीर मन्दिर में छोटी धातुप्रतिमा- सं० १००१ में श्रीश्रेयांसनाथ का पिम्म पुंवणने अपने कल्याणार्थ बनवाया।
"Aho Shrut Gyanam"