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( २९४ )
रत्नसिंह पत्नी कालुदेवी पुत्र रंगदेवने ( अपने ) कल्याणार्थ देवकुलिका करवाई ।
( ३०५ - ३०६ )
देवकुलिका नं० ४३, ४४
सं० १४८३ वैशाखक्र० ७ रविवार के दिन तपगच्छनायक श्री देवसुन्दरसूरि के पट्ट को अलङ्कृत करनेवाले भट्टा० श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीमुनिसुन्दरसूरि श्रीजयचन्द्रसूरि के उपदेश से योगिनीपुर के निवासी शा० रूला पुत्र हंसराज, पुत्री हंसादेवी पुत्र रंगदेवने करवाई ।
(2009)
देवकुलिका नं० ४५
सं० १८८३ वैशाखशु० १३ के दिन तपगच्छाधिराज श्रीदेवसुन्दरसूरि के पट्ट को अलङ्कृत करनेवाले श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीजयचन्द्रसूरि के उपदेश से रतनपुर निवासी सं० लक्ष्मण पुत्र सं० राघव, मंत्री गोसल पुत्र सोमप्रभराज भार्या रंगादेवी पुत्र सोमदेवने रंगादेवी के श्रेयार्थ ( देवकुलिका ) करवाई ।
इन लेखों में भुवनसुन्दरसूरि के नाम संभवतः इसलिये नहीं है कि ये दोनों आचार्य जीरापल्लीतीर्थ में उस समय विद्यमान नहीं थे । देवकुलिका नं० ४१, ४२ के द्वितीय
"Aho Shrut Gyanam"