Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 306
________________ (२९३) सोमसुन्दरमरि श्रीमुनिसुन्दरमरि श्रीजयचन्द्रपरि श्रीभुवनसुन्दरमरि श्रीजिनसुन्दरसूरि के उपदेश से श्रीमालज्ञातीय ......पुत्र ठ० सारंग पुत्र 30 गुणराज पुत्र नागराजने अपनी भार्या के कल्याणार्थ यहाँ अग्रशिखर बनवाया। (३०४ अ) देवकुलिका नं० ४२ कल्याणकारी जय और अभ्युदय हो। " प्रतिष्ठराजा के नन्दन और सुसीमाराणी के अंग से उत्पन्न श्रीपद्मप्रमजिनेन्द्र रक्त कमल की प्रभा के समान दिखाई देते हैं वे पवित्र करें।" सं० १४२१ कार्तिक शु० ५ रविवार के दिन हस्तनक्षत्र में कोड़ीनारनगरनिवासी आगमिकगच्छानुयायी मोड़ज्ञातीय सुश्रावक झाल्हा, समदेव, ठ० बीना, ४० सणसव, जयता पुत्र सं० अजितने मार्या हिवा (शिवा) देवी आदि कुटुम्ब परिवार सहित भव को जीतने के लिये श्रीपअप्रभस्वामी का विम्ब करवाया। नेहर भार्या अहिवदेवीने श्रीपार्श्वनाथ की देवकुलिका बनवाई। - सं० १४८३ वैशाखशु०७ के दिन भट्टारक श्रीदेवसुन्दरमरि के पट्टधर सोमसुन्दरसूरि मुनिसुन्दरसूरि जयचन्द्रसरि भुवनसुन्दरसूरि जिनसुन्दरसूरि के धर्मोपदेश से श्रीमालक्षातीय विजयसिंह पुत्र जगतसिंह पुत्र गुणपति, "Aho Shrut Gyanam"

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