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(२९१) प० राउल पुत्र भोजा, प. सोमा पुत्र आशा और हिचकूने अपने श्रेयार्थ देवकुलिका (जीरापल्ली तीर्थ में) करवाई।
पारी, पारीख और पारख गोत्र आज भी विद्यमान है जो परीक्षक का अपभ्रंस शब्द है। शिलालेखकोंने लेखों में परीक्षक न लिख कर 'परीक्ष' लिख दिया है।
(३०२) देवकुलिका नं० ३८ के स्तम्भ पर
सं० १५३४ वैशाखकृ० १० सोमवार के दिन सं० रत्ना के मित्र, न्याति मलुकगोत्रीय सं० जीवा के पुत्र सं० मंडन, जीवन, जीवदेव, खेता सहित मांडलगढ़ से ( यहाँ अभिवर्द्धित भाव से) यात्रा करने के लिये आया। ' इस लेख की रचना थोड़ी होकर भी अजीबढंग की हैं। फिर भी रत्ना न्याति परिवार से यहाँ यात्रार्थ मांडलगढ से आया इतना तो स्पष्ट हैं।
(३०३ अ) देवकुलिका नं. ४१
सं० १४२१ ज्येष्ठ शु. १२.बुधवार के दिन मूलनक्षत्र और सिद्धिनामक योग में उपकेशमच्छीय श्रीककुदाचार्य
१ लेखाङ्क ५२ में रविवार लिखा है।
"Aho Shrut Gyanam"