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( २८८ )
शा० लक्ष्मणसिंह, मीमल, देवल या तो इस समय तक मर चुके हैं या निस्सन्तान हैं या देवकुलिकाओं के बनवाने में उनका द्रश्य नहीं लगा है, इसीलिये उनकी सन्तान और स्त्रियों का नामोल्लेख नहीं है। पूंजा और भजा का मी द्रव्य देवकुलिकाओं के करवाने में व्यय नहीं हुआ प्रतीत होता है। झांझा की स्त्री का नामोल्लेख होना और सारंग की स्त्री का नामोल्लेख लेखाइ २९४ में नहीं होना प्रगट करता है कि देवकुलिका नं० २८ झांझाने अपने द्रव्य से बनवाई और अपने भ्राता के नाम सौजन्यता और भ्रातृप्रेम के कारण अपने शिलालेख में उत्कीर्ण करवाये ।
लेखाङ्क २९५ ( अ ) से भी यही विदित होता है कि डोसाने द्रव्य व्यय किया और लेख में उसके भ्राताओं का नाम होना उसकी सौजन्यता प्रकट करता हैं । लेखाङ्क २९५ ( ब ) में डूंगर, चांपा की स्त्रियों का भी नाम है तथा पितृव्य शा० पूंजा का भी नाम है इस से विदित होता है कि इस लेख में जितने भी व्यक्ति हैं उन सब का द्रव्य लगा है ।
दुग्धेड़ वंशवृक्ष |
क्ष्मणसिंह भीम देवल सारंग ( प्रतापदेवी) झांझा ( मेघूदेवी ) पूंजा भजा
डोसा (लक्ष्मीदेवी) चांपा ( भीखीदेवी) डूंगर ( कौतुकदेवी ) मोखा..
"Aho Shrut Gyanam"