Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 294
________________ (२८१) शा० धणसी (धनसिंह ) सन्तति में शा० जयता (जयंतसिंह) भा० तिलकूनाई पुत्र सं० समरसिंह सं० मोखसिंहने श्रीजीराउलातीर्थ के चैत्य में देवकुलिका बनवाई। पार्थनाथ की कृपा से मंगल होवे। (२८२) देवकुलिका नं. ११ xxxxxxx कलवर्णानगरनिवासी ओसवाल कटारिया गोत्रीय कोठारी छाहड़ सामन्त की सन्तति में को नरपति भा० देमाई के पुत्र सं० तूकदेव, पासदेव, पुनसी (पुण्यसिंह ), मूलाने जीरापल्लीतीर्थ के चैत्य में देवकुलिका करवाई। श्री पार्थप्रभु की कृपा से मंगल होवे । मेरा श्रेष्ठ कटारिया गोत्र है, मेरे पिता नरपति, मेरी माता देमाई है, और श्रीसोमसुन्दरसरिजी मेरे गुरु हैं जो श्रीछीलन मेड़ता मात्र की पौषालों में वन्दनीय गुरुदेवों के गुरुदेव माने जाते हैं। पूर्णचन्द्रनाहरने अपने ' लेखसंग्रह ' के प्रथम भाग में यह लेख कुछ अंश को छोड कर सारा लेखाङ्क ९७४ में उधृत किया है। उसमें नाहरजीने 'श्रीछालजमंडनमात्रशालं' उल्लिखित किया है, जिसका भी क्या अर्थ बैठता है? समझ में नहीं आया। छालज की जगह छाहड़ होता तो भी कुछ संगति होती। "Aho Shrut Gyanam"

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