Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad

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Page 295
________________ (२८२) (२८३) देवकुलिका नं० १२ ___xxxxxxx कलवानिवासी ओसवालज्ञातीय वरहडियागोत्र के शा० झांझा की सन्तति में शा० उदयन मा० छीतू के पुत्र सं० आशपालने जीरापल्ली चैत्य में देवकुलिका करवाई, श्रीपार्धनाथ की कृपा से मंगल होवे । (२८४) देवकुलिका नं० १३ xxxxxxx कलवानिवासी ओसवालजातीय नाहरगोत्र में शा० वीगा की सन्तति में शा० उदयसी (उदयसिंह) भा० वामलदेवी के पुत्र शा० पासिंहने जीराउलातीर्थ के चैत्य में देवकुलिका करवाई। पार्थप्रभु की कृपा से मंगल होवे। (२८५) देवकुलिका नं. १४ xxxxxxx कलवानिवासी ओसवालजातीय सांवलगोत्र में भा० घणसिंह की सन्तति में सं० माला भा० सं० पूनाई के पुत्र जगसिंह, सं० खोखसी भा० बाईहीरू के पुत्र सं० कमलसिंहने अपनी माता कस्तूरी के श्रेयार्थ पार्थनाथ की कृपा से जीराउलाचैत्य में देवकुलिका करवाई। . "Aho Shrut Gyanam"

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