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थराद पर यवनों का घातक आक्रमण हुआ और इस आक्रमण से थराद की जाहोजलाली को बड़ा घका लगा । १४४४ स्तम्भों का मन्दिर तथा कुमारपाल का बनवाया मन्दिर तोड़ डाला गया । थराद का व्यापार, वाणिज्य भी नष्ट हो गया। धीरे धीरे थराद की स्थिति सुधरी, परन्तु वह पूर्व की शोभा फिर नहीं आ पाई । सं० १२३० में थराद पर यवनों का आक्रमण हुआ था और सं० १३०० तक थराद यवनों के अधिकार में रहा । चौदहवीं शताब्दि के प्रारंभ में पुनः इस पर नाडोल के क्षत्रियों का और वात्र पर जैसा ऊपर कहा जा चुका है राणा पूंजा के पुत्रने अपना राज्य पुनः स्थापित किया । इस प्रकार थरादराज्य के दो विभाग हो गये, परन्तु यवनराज्य तो समाप्त हो गया । चौदहवीं शताब्दि से थराद यवनों के आक्रमण से बचा और उसकी शोमा एवं समृद्धि तो घटी, परन्तु आबादी पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ पाया। क्योंकि यवनराज्य केवल सत्तर (७०) वर्ष पर्यन्त ही रहा, अधिक नहीं रह सका ।
इस शिलासंग्रह में २७३ शिलालेख तो केवल थराद के ही हैं। ये लेख थराद के जिनालयों में विराजित धातुमय चौत्रीशियों, पंचतीर्थियों और छोटी बड़ी प्रतिमाओं के हैं । इनमें जूना से जूना लेख ग्यारहवीं शताब्दि का है । शताब्दि वार लेखों की संख्या इस प्रकार है ।
"Aho Shrut Gyanam"