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( १८७) यवन आक्रमण के पूर्व थरादथराद की जाहोजलाली और आभूश्रेष्ठी
धरुवंशीय, परमार और नाडोल के चौहान इस प्रकार तीनों कुलों का थराद पर राज्य विक्रम की तेरहवीं शताब्दि के पूर्वार्द्ध तक रहा। इतनी शताब्दियों तक हिन्दू राज्य रहने के कारण थराद व्यापार, कला, वाणिज्य, व्यवसाय, धन और समृद्धि में गुर्जर और सौराष्ट्र के प्रमुख नगरों में गिना जाने लगा। इस नगर में जैनियों का सदा प्रमुत्व रहा । अनेक धनी मानी कोटीध्वज जैन यहां और इसके ग्रामों में रहते थे । विक्रमसं० ११११ में जब मरुधरप्रदेश के प्रसिद्ध, ऐतिहासिक, समृद्ध नगर मिनमाल को जीत कर मुसलमानोंने नष्ट-भ्रष्ट किया, तब वहाँ से ग्यारह कोटीद्रव्य का स्वामी शंखसेठ का वंशज सहसाशाह और श्रीमाली. ज्ञातीय काश्यपगोत्रीय श्रे० जूना का वंशज थरादराज्य के अचवाड़ीग्राम में आकर बसे । इसी प्रकार श्रीमालीशातीय वृद्धशाखीय इक्कीस कोटीद्रव्य के स्वामी सोमासेठ का वंशज तिहुअणसी(त्रिभुवनसिंह) और तीन कोटिद्रव्य का स्वामी श्रीमालीज्ञातीय चंडीसर का वंशज वीरदास खेनप में आकर बसे । इस प्रकार थरादराज्य में विपुल धनशाली श्रीमन्तों का प्रभुत्व बढ़ता ही गया और वह अक्षुण्ण रहा ।
थराद में श्रीमालीज्ञातीय श्रेष्ठी संघपति आभू अधिक.
"Aho Shrut Gyanam"