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उनकी छः पीड़ी पर्यन्त रहा। अन्तिम चौहान राजा पूंजाली के ऊपर मुसलमानोंने आक्रमण किया और थराद को जीत लिया । इस प्रकार संवत् १२३० से १३०० तक थराद पर यवन अधिकार रहा । मुसलमानों के हाथ में थराद के चलेजाने पर राणा पूंजाजी की विधवा राणी अपने शिशु लड़के को लेकर अपनी माता के घर चली गई । कुंचर जब युवावस्था को प्राप्त हुआ तो वीर निकला और थराद के राज्य के लोगों की सहाय पाकर उसने पुनः थरादराज्य पर अपना अधिकार कर लिया। उसने ' वान' नामक नवीननगर को अपनी राजधानी बनाई, जहाँ पर अमी तक भी उसके वंशज राज्य कर रहे हैं। यवनों के भय से थराद से उसने राजधानी उठा ली । अवसर पाकर नाडोल के चौहानोंने थराद पर पुनः अधिकार कर लिया। परन्तु अठारहवीं शताब्दि के उत्तरार्ध में थराद पर राधनपुर के नवाबों का अधिकार हो गया जो विक्रमसं० १८१५ तक रहा । विक्रमसं० १८१५ में वर्तमान ठाकुरों के पूर्वज खानजीने थराद पर अधिकार किया जो अद्यावधि उनके वंशजों के अधिकार में ही चला आ रहा है । थराद के वर्चमान ठाकुर (दरबार ) भीमसिंहजी है और उनके ज्येष्ठ पुत्र युवराज जोरावरसिंहजी हैं। यह तो हुआ थराद के ऊपर शासन करनेवाले राजा और उनके शासनकालों का संक्षिप्त परिचय ।
"Aho Shrut Gyanam"