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इस बिम्ब की प्रतिष्ठा होने की तिथि वही है जो लेखाडू ५ में है। दोनों लेखों में आचार्य, संवत और ग्राम भोयली ही हैं । अतः वणबीर और उदिरा सहोदर हैं ।
(१३)
सं० १४१७ वैशाखशु० २ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० लीम्बा, मा० नामलदेवी पुत्र सहजाने भा० सहजलदेवी पिता लींबा के कल्याणार्थ श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिच करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीउदयानन्दसूरिके पट्टाधीश श्रीगुणदेवसूरि के द्वारा हुई । ( १४ )
सं० १४९५ आषाढशु० ९ रविवार के दिन ब्रह्माणगच्छीय श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० गोरा मा० देल्हणदेवी के पुत्र भारमल भा० पोमादेवी के पुत्र डूंगर और भाखरने पितृजनों के श्रेयार्थ श्रीधर्मनाथजी का विम्ब करवाया, जो श्रीमद् जजगसूरि के पट्टाधीश पज्जुन्नसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ ।
( १५ )
सं० १४२९ माघक्र० ५ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० अभयसिंह मा० आल्हणदेवीने पितृ कमा( कर्मचन्द्र ) के कल्याणार्थ श्रीमूलनायक पार्श्वनाथप्रभु का श्रेयस्कर बिम्ब श्रीनरप्रभसूरि के उपदेश से करवाया ।
"Aho Shrut Gyanam"