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(२७८) अनुसार भाद्रपदकृष्णा सप्तमी को गुरुवार था। दो दो तिथियों के टूटने पर ही ऐसा संभाव्य है, सो प्रायः संभव नहीं, अति कठिन है।
(२७४ से २७६) देवकुलिका नं० २, ३, ४. __स्वस्ति श्री सं० १४८१ वैशाखशु० ३ के दिन बृहतपापक्ष महा० श्रीरत्नाकरसरि के अनुक्रम से हुए श्रीअभयसिंहमरि के पट्टारूढ़ श्रीजयतिलकसूरीश्वर के पाट को अलंकृत करनेवाले भट्टारक श्रीरत्नसिंहसूरि के उपदेश से वीसलनगरनिवासी प्राग्वाटवंश को सुशोभित करनेवाले श्रे खेतसिंह का पुत्र श्रे० देहलसिंह का पुत्र श्रे० खोखा भा० पिंगलदेवी उसके पुत्र सं० सादा, सं० हादा, सं० मादा, सं० लाखा, सं० सिधा द्वारा इस तीर्थ के चैत्य में तीन देवकुलिकायें अपने कल्याणार्थ बनवाई।
पूर्णचन्द्र नाहर एम.ए.बी.एल.ने अपने 'लेखसंग्रह' प्रथम भाग के लेखाङ्क ९७७ को जो. लेख उद्धृत किया है, इससे बहुत अधिक मिलता है। उन्होंने पिंगलदेवी के स्थान पर पिनलदेवी, सं० मृदा सं० मादा के स्थान पर
और देहल, हादा न लिख कर स्पष्ट देवल और दादा लिखा है और सं० लाखा का नाम ही नहीं है जो विचारणीय है।
"Aho Shrut Gyanam"