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प्रस्तुत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद किया है, उन्हीं की सुयोग्य शिष्या प्रथम गणिनी ज्ञान चिन्तामणि जिन धर्म प्रभाविका परम पूज्या १०५ आर्यिका श्री विजयामति माताजी ने, ताकि पद्यार्थ भी स्पष्ट रूप से सभी जानकर धर्म लाभ ले सकें।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन के प्रेरणा स्रोत हैं, परम पूज्य आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराज के पट्टाधीशभारत गौरव, सिद्धान्त चक्रवर्ती, तपस्वी सम्राट १०८ आचार्य श्री सन्मतिसागरजी महाराज । आप में परम पूज्य आचार्य श्री आनिता श्री महागात अंदलीबार ही हता, आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराजकाअनुपम ज्ञान व निर्भयता, परम पूज्य आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज की वात्सल्यता एकत्रित होकर मूर्तिमान रूप झलकती है।
इस विषय कलिकाल में जहाँ सत्साहित्य का अभाव सा हो रहा है। कथा साहित्य के रूप में दुषित मनोरंजक एवं विषय कषाय पोषक साहित्य का सृजन हो रहा है, ऐसे समय में महान आचार्यों द्वारा रचित साहित्य को जनजन तक पहुँचाना अत्यन्त आवश्यक है। जिन महानुभाव ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन में अपने द्रव्य का सदुपयोग किया, वे साधुवाद के पात्र हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ का स्वाध्याय कर, मनन कर तदनुरूप आचरण कर पाठक गण अपना दुर्लभ मानव जीवन सफल बनायें। इसी पुनीत भावना के साथ..आचार्य श्री के चरणों में बारम्बार नमन करता हूँ।
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