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सन्धान- महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा
सूक्त, सरमा-पणि सूक्त, २ इन्द्र- मरुत् सूक्त, ३ विश्वामित्र - नदी सूक्त' आदि प्रमुख हैं। पुराणों और महाभारत आदि में भी इस प्रकार की लोकगाथाएं शिष्ट साहित्यिक रूप धारण कर समाविष्ट हो गयी हैं ।
पाश्चात्य विद्वानों में ओल्डनबर्ग प्रभृति कतिपय मनीषियों के अनुसार ये आख्यान प्रारम्भ में गद्य-पद्य मिश्रित रहे होंगे । इसका कारण यह रहा होगा कि यूरोपीय परिवार के समस्त पुरातन साहित्य में यह गद्य-पद्यात्मक रूप में दिखायी देते हैं ।“ कीथ इस मत का निराकरण करते हैं । उनके अनुसार वेदों में इस प्रकार के गद्य-पद्य मिश्रित आख्यान उपलब्ध नहीं हैं, यह अनुमानमात्र है । किन्तु, उत्तर वैदिक वाङ्मय में गद्य-पद्यात्मक आख्यान दृष्टिगोचर होते हैं । उदाहरणत: ऐतरेय ब्राह्मण में शुनःशेप' तथा शतपथब्राह्मण में पुरुरवोर्वशी' आख्यान गद्य-पद्यमय हैं। ऐसे आख्यानों को प्रारम्भ में गाथा या गाथानाराशंसी कहा जाता था । परवर्ती काल में इन्हीं को इतिहास, पुराण तथा आख्यान नाम दिया गया । महाभारत में इतिहास शब्द 'अनुश्रुति' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । १° वेदों की दान - स्तुतियों का अपरनाम भी नाराशंसी गाथा था । इस प्रकार वैदिक वाङ्मय में उपलब्ध संवादसूक्त, दानस्तुति अथवा आख्यान (गाथा) आदि को लोकगाथा का प्राचीन रूप स्वीकार किया जा सकता है ।
ऋग्वेद,१०.८६
१.
२ . वही, १०.१०८
३.
वही, १.१६५
४.
वही, ३.३३
५.
Z.D.M.G., Vol. XXXVII, p.54
६.
Keith, A.B. The Origin of Tragedy and the Akhyan (J.R.A.S., 1912), p. 437
७. ऐतरेय ब्राह्मण, ७.१५.७
८.
शतपथ ब्राह्मण, ११.५.१.१ ९. अथर्ववेद, १५.६.१०,११,१२
१०. महाभारत, ३.२१.३५