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आप अनेक भाई-बहन सुदूर महाराष्ट्र से आये हैं । सम्पूर्ण भारत राष्ट्र है परन्तु आपका प्रान्त महाराष्ट्र है । एक सुराष्ट्र है, जिसे सौराष्ट्र कहते हैं, किन्तु आप उससे भी आगे महा तक पहुँच गये हैं । आगमों में महाराष्ट्र की भाषा के अनेक शब्द उपलब्ध हैं । आगमों की प्राकृत में उस युग की महाराष्ट्र की बोली के हजारों शब्द भरे पड़े हैं | आगम-वाङमय ने यात्रा करते-करते मगध से महाराष्ट्र की यात्रा की । इतिहास है महाराष्ट्र का । आप धन्ना-शालिभद्र की कहानी से परिचित हैं | धन्ना कहाँ का है ? वह महाराष्ट्र का है प्रतिष्ठानपुर (पैठन) का है । विलक्षण व्यक्तित्व है कर्म के देवता धन्ना का । मूल नाम धन्यकुमार है, वह यथार्थ में धन्य ही है । वह महाराष्ट्र से कितनी लम्बी यात्रा करके मगध की राजधानी राजगृह में आया है । बीच में वह जहाँ जाता है, ठहरता है, वहाँ ऐश्वर्य के लहलहाते बाग लगा देता है । उसके पीछे-पीछे परिजन आते हैं भूखे-प्यासे । उन्हें सब-कुछ सौंपकर फिर आगे बढ़ जाता है । और, बढ़ते-बढ़ते मगध पहुँच जाता है । कितना तेजस्वी है कि मगध सम्राट श्रेणिक का दामाद तक बन जाता है और राजगृह का वैभव सम्पन्न सेठ गोभद्र भी अपनी कन्या सुभद्रा का उसके साथ विवाह कर देता है | कितना तेजस्वी और त्याग निष्ठ है धन्ना । एक दिन स्नान कर रहा है, उसकी स्नेह में पगी आठों ही पलियाँ स्नान करा रही हैं | शालिभद्र की बहन सुभद्रा के खिन्न उदास चेहरे को देखकर खिन्नता का कारण पूछता है, तो वह बताती है कि मेरा एक ही तो भाई है शालिभद्र | उसे वैराग्य हो गया है । भगवान् महावीर के चरणों में दीक्षा लेना चाहता है | अत: वह अपनी बत्तीस पत्नियाँ को समझा रहा है । प्रतिदिन एक-एक पत्नी को समझाता है, छोड़ता है । बत्तीस दिन खत्म होने को हैं । दीक्षित हो जाएगा, तो मेरे परिवार का क्या होगा ?
तब वीर-पुरुष धन्ना कहता है-अहो, यह बात है ! तुम्हारा भाई कायर है । जब सब छोड़ना ही है, अध्यात्म-साधना के पथ पर गति करना ही है, तो इस तरह दिनों का विलम्ब क्यों कर रहा है ? ज्यों ही मन में भावना जगे, बस त्यों ही साधना-पथ पर गतिशील हो जाना चाहिए। यह प्रतिदिन घर में बखेड़ा करना, रुदन करवाना क्या ठीक है ? अरे, शालिभद्र यह कैसा नाटक खेल रहा है ? छोड़ना ही है, तो एक साथ क्यों नहीं छोड़ देता है ?
सुभद्रा को चुभ गई बात | उसने प्रत्युत्तर में व्यंग्य-विनोद की चुटकी लेते कहा-"कहना तो सरल है, छोड़ना कठिन है । तुम स्वयं छोड़ो, तब पता
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