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जीवों की है, कीड़े-मकोड़ों की है, उतनी मानव की नहीं । जातिवाद, प्रान्तीयतावाद और सर्वाधिक घृणित संप्रदाय के नाम पर निर्दोष भद्रजन मारे जा रहे हैं और ये धर्मनेता एकांत मठ-मन्दिरों एवं अपने धर्मस्थलों में बैठे, जनमोहक मधुर स्वरों में अहिंसा की शाब्दिक बाँसुरी बजा रहे हैं-' रोम जल रहा है और नीरो बांसुरी बजाने का आनन्द ले रहा है। वर्तमान में हम धर्मगुरुओं की स्थिति बहुत ही विचित्र है, विसंगत है । अभी-अभी समाचार पत्रों में अहिंसा के दिव्यावतार भगवान महावीर की जयन्ती के अनेक विवरण पढ़े हैं । सब जगह अहिंसा, मैत्री की वीणाएँ बजी हैं, वीणा वादन क्या, शंखनाद भी हुए हैं । भगवान् महावीर की अहिंसा को विश्वशान्ति का एकमात्र अमोघ महामंत्र बताया गया है । परन्तु मैं पूछता हूँ, विश्वशान्ति की बात तो दूर की है, वर्तमान में अहिंसा के उद्घोषक आप पंजाब की शान्ति के लिए क्या कर रहे हैं, हिंसा की राक्षसी ताड़का के दलन के लिए अहिंसा मंत्र का अनुष्ठान यज्ञ किस रूप में किया जा रहा है । मालूम होता है, अहिंसा जीवन के प्रत्यक्ष कर्म के क्षेत्र में से निकलकर, बस, अब जन-मन रंजन रूप वाणी के क्षेत्र में केन्द्रित हो गई है। अधिक कुछ हुआ तो अहिंसा की चर्चा से सम्बन्धित दो-चार पुस्तकें छप गईं, यदि और भी कुछ अधिक हुआ तो ध्वनि-यंत्र और फ्लस आदि के प्रयोग के विरोध में हिंसा की चर्चा कर ली और उलझ गए इधर-उधर की निन्दा-स्तुति में । एक
ओर अपनी आवश्यकताओंकी पूर्ति के लिए तो लंबे चौडे बड़े-बड़े अनेक द्वार खोल लिए हैं, किन्तु दूसरी ओर साधारण सा यथावश्यक एक छिद्र भी असह्य
अपेक्षा है आज अहिंसक समाज रचना के लिए अहिंसा के सही और सक्रिय नेतृत्व की । अहिंसा केवल वाग-विलास का निष्क्रिय सिद्धान्त न रहकर उसे सक्रिय प्राणवान सिद्धान्त होना चाहिए । और अहिंसा में यह प्राणवत्ता आ सकती है, अहिंसा के पक्षधर धर्म-संघों के पीठासीन धर्म-गुरुओं के द्वारा । आज भी समाज पर, जन-मानस पर धर्म गुरुओं का सर्वाधिक प्रभाव है । पूर्वजों के महान् आदर्शों के उत्तराधिकारी होने के नाते आज भी वे जनता को सही नेतृत्व दे सकते हैं । और यह नेतृत्व देना है -' अहिंसा परमो धर्मः' के महान आदर्श मंगल सूत्र के रूप में । यह स्पष्ट है कि हिंसा का प्रतिकार हिंसा नहीं है । आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता । रक्त से सने वस्त्र को रक्त से नहीं धोया जा सकता | हिंसा का प्रतिकार अहिंसा ही है । और, जो समाज में व्याप्त दुराचार, भ्रष्टाचार, बलात्कार आदि जो अमानवीय अपकर्म हैं, वे सब भी
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