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सन्त रु सरिता, बादली, चले भुजंग की चाल ।
जे जे सेरी निकसे, ते ते करत निहाल ||"
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३६. सौम्य : सौम्य का अर्थ है शान्त मन, वाणी और दृष्टिवाला सुन्दर मनोहारी व्यक्तित्व । जिसके दर्शन मात्र से उद्विग्न एवं खिन्न मन सहसा शान्त एवं प्रसन्न होता चला जाए, यथार्थ में वही सौम्य पुरुष है । इस प्रकार सौम्य व्यक्तित्व के मूर्धन्य आचार्य ही जिन शासन के शृंगार होते हैं ।
मेरा यह लेख आलोचना के मूड में किसी विपरीत भावना से नहीं लिखा गया है । यह मात्र आदर्श आचार्य का आदर्श व्यक्तित्त्व द्योतित करने के लिए है । प्रस्तुत लेख पर से आज के आचार्य पद वाच्य महानुभाव सोचें, समझे और विचार करें कि वे कहाँ हैं, किस भूमिका में हैं । आचार्य पद के भावी भावना रखने वाले मनीषी भी विचार लें कि उन्हें क्या होना है, क्या करना है ? मैं मानता हूँ कि आचार्य के उक्त सभी गुण संभवत: उपलब्ध न हो, फिर भी अधिक-से-अधिक जितने हो सकें, उतने गुण तो होने ही चाहिए ।
अगस्त १९८६
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