Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 259
________________ एक डॉक्टर है, उसके पास एक ही रोग से ग्रस्त एक बालक आता है, एक नौजवान आता है, एक वृद्ध आता है तथा एक सशक्त व्यक्ति आता है और एक दुर्बल, डॉक्टर एक ही रोग में इन्हें या तो औषध विभिन्न देता है, अथवा कभी एक ही औषध देता है, तो विभिन्न मात्रा में । वह ऐसा क्यों करता है ? इसलिए कि समागत रोगियों की शारीरिक आदि की स्थिति में विभिन्नता है। अतः डॉक्टर द्वारा औषध का रूप भी विभिन्न रूप लेता है। सब को एक ही औषधि या एक ही मात्रा, नहीं निर्धारित की जा सकती है। यदि वह अज्ञानतावश ऐसा करता है, तो रोगियों को लाभ के बदले, हानि ही अधिक उठानी पड़ेगी। यह है विभिन्नताओं में भी समन्वय साधने का एक रूप । एक और प्राचीन कथानक है। एक छोटे से गाँव में छह जन्मांध व्यक्ति रहते थे। छहों परस्पर मित्र थे। एक बार पहली बार गाँव में हाथी आया। सारे गाँव में हाथी आया, हाथी आया का हल्ला मच गया। छहों अन्ध मित्रों के मन में भी हाथी देखने की इच्छा हुई। वे भी एक-दूसरे का हाथ पकड़े, लाठी लिए चल पड़े। हाथी के पास जा कर बिखर गए । और, हाथी के एक-एक अंग को स्पर्श कर हाथी का ज्ञान प्राप्त करने लगे। जब हाथी को देख कर लौट रहे थे, तब परस्पर चर्चा करने लगे कि - " हाथी मूसल जैसा है, हाथी स्तम्भ जैसा है, हाथी रस्से जैसा है, हाथी कुदाल जैसा है, इत्यादि ।” जिसने सूंड, दांत, पांव आदि जो-जो अंग छुए थे, उसी रूप में वह हाथी का वर्णन करने लगा। अब क्या था, विवाद उठ खड़ा हुआ ? प्रत्येक अपने स्पृष्ट अंग को ही हाथी समझे हुए था, और उसीका आग्रह करके एक-दूसरे को झूठा बता रहा था । द्वन्द्व युद्ध चल रहा था । इसी बीच एक निर्मल नेत्र एवं सुचक्षु व्यक्ति ने देखा, तो उसे आश्चर्य हुआ कि ये अंधे क्यों लड़ रहे हैं ? पूछने पर पता चला, तो उसे हँसी आ गई । उस भले आदमी ने सोचा कि चलो, इनका समाधान कर दूँ । अन्यथा ये अपने-अपने एकान्त अन्ध- आग्रह पर लड़ते ही रहेंगे । वह सबको वापिस ले गया। और, उसने प्रत्येक अंधे को हाथी के प्रत्येक अंग का स्पर्श कराया और बताया कि यह हाथी की सूंड है, यह हाथी का पैर है, यह हाथी की पूँछ है, आदि-आदि । इस प्रकार प्रत्येक को हा का सर्वांगीण रूप बताकर समाधान दिया, कि यह सब मिलकर एक हाथी है । अन्धों की विग्रह की समस्या हाथी के एक-एक अंग को पूरा हाथी समझने की दृष्टि ही थी । सुलोचन व्यक्ति ने सब अंगों का ज्ञान कराकर समन्वय की दृष्टि दी । और, समस्या का सही समाधान कर दिखाया । दार्शनिक तथा लौकिक सभी व्यवहारों, विचारों एवं कार्यों में भी एकान्त आग्रह की दृष्टि, अंधों की गज-दृष्टि है । और, यह अर्थहीन द्वन्द्वों एवं संघर्षों का मूल है। सुलोचन व्यक्ति और कोई नही, अनेकान्त - दर्शन है । उसकी (५१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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