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बैठता अपनी यात्रा के मार्ग बदलता हुआ एक अद्वितीय महातिमहान जीवंत दार्शनिक व्यक्तित्त्व हैं ।
अनेकान्त के सैद्धान्तिक गूढ़ दर्शन एवं तात्त्विक विषयों की मैं अन्यत्र अनेक बार चर्चा कर चुका हूँ | अत: उसे मैं यहाँ समेट लेता हूँ। फिर भी परिचय के लिए कुछ पंक्तियाँ लिख देना आवश्यक है |
१) वस्तु नित्य है या अनित्य है ? यह विभिन्न दर्शनों की एक सैद्धान्तिक चर्चा है । कुछ दर्शन इस सम्बन्ध में एकान्त नित्यवादी हैं, तो कुछ अनित्यवादी । परन्तु अनेकान्त के अमर देवता महाप्रभु महावीर का अनेकान्त दर्शन कहता है कि विश्व की प्रत्येक वस्तु नित्य भी है, अनित्य भी । उदाहरण स्वरूप घट को ही लीजिए | मूल परमाणु रूप द्रव्य दृष्टि से नित्य है | किन्तु, वही घट पर्याय दृष्टि से अनित्य भी है। पर्याय-अवस्था, आकार विशेष आदि ।
२) दर्शन क्षेत्र की एक और चर्चा है, वस्तु सत् है या असत् | घट को ही लीजिए। घट अपने घटत्व स्वरूप से सत् है और वही घट, घट भिन्न पट आदि के पटत्व आदि स्वरूप से असत् भी है | यदि घट पट रूप से भी सत् हो जाए, तो दोनों में अर्थ, क्रिया आदि की भिन्न रेखा कैसे प्रतिभासित होगी ?
३) दार्शनिक क्षेत्र का एक और विवाद है । एक वस्तु अपने में एक है अथवा अनेक | घट को ही लीजिए । घट एक है या अनेक ? घट अपनी वर्तमान स्थिति में दृश्य रूप से द्रव्यरूपेण एक है | किंतु अपने अन्तर्गत परमाणु एवं गुण आदि की दृष्टि से अनेक भी है | अनेक ही नहीं, अनन्त है । इस दृष्टि से क्षुद्र-से-क्षुद्र रजकण भी एक होते हुए भी अनन्त है ।
४) दार्शनिक क्षेत्र का एक और विवादास्पद प्रश्न है, कि ५स्तु गुण और गुणी की दृष्टि से परस्पर भिन्न है या अभिन्न । घट को ही लीजिए। घट एक गुण पदार्थ है, किन्तु उसके रूप, रस, गंध, स्पर्श, आकार एवं अर्थ-क्रियाकारित्व आदि अनन्त गुण हैं । उक्त गुणी एवं गुणों की परस्पर भिन्नता है या अभिन्नता? भेदवाद के पक्षधर कणाद आदि एकान्त भिन्नता मानते हैं | और, अभेदवादी वेदान्त आदि एकान्त अभिन्नता | किन्तु, अनेकान्त-दर्शन भेदाभेदवादी है । गुण गुणी से सर्वथा भिन्न नहीं
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