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कौन है, जो नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका या टब्बा आदि का निर्माण करने का प्रयास करेगा? प्रस्ताव में स्व-विवेक शब्द का प्रयोग किया गया है । यह स्व-विवेक क्या है? जो अन्य किसी प्रस्ताव के लिए अपेक्षित नहीं, किन्तु इसी प्रस्ताव में अपेक्षित समझा गया है । कुछ महानुभावों ने कहा है-स्व-विवेक का अर्थ है, जहाँ-कहीं आवश्यक हो, तो वहाँ फ्लश आदि आधुनिक शौच-साधनों का प्रयोग किया जा सकता है । यदि यही अर्थ है, तो स्पष्ट ही क्यों न लिख दिया गया कि यथाप्रसंग फ्लश आदि का भी उपयोग किया जा सकता है । यदि यह अर्थ नहीं है, तो अब फिर से स्पष्ट कर देना चाहिए कि इस 'स्व-विवेक' का क्या अर्थ है? सामान्यत: तो साधक के लिए सर्वत्र ही स्व-विवेक अपेक्षित है | फिर यहाँ विशिष्ट रूप से स्व-विवेक अपेक्षित है। फिर यहाँ विशिष्ट रूप से स्व-विवेक का उल्लेख क्या गूढार्थ रखता है? स्पष्ट है कुछ अन्य अर्थ नहीं है, जनता को केवल शब्दों के भ्रम-जाल में उलझाए रखने के सिवा | महाभारत काल का-'नरो वा कुंजरो वा' अब भी चला रहा है । किन्तु, खेद तो इस बात का है, ये सत्य के पक्षधर साधकों की पवित्र भाषा में चल रहा है । यह सब है, माया महाठगनी का भ्रमजाल ।
मैं ऐसा कुछ नहीं लिखना चाहता था, किन्तु मुझे लगा कि सैकड़ों साधु और साध्वियों के यहाँ भी क्यों यह माया महाठगनी की ठग विद्या चल रही है ? शब्द कठोर है, क्षमा-याचना कर लेता हूँ।
किन्तु, चाहता हूँ, सत्य की प्रतिष्ठा के लिए हम सबको नटकला की नाटकीयता से शीघ्राति-शीघ्र मुक्त हो जाना चाहिए | आज का युग यही अपेक्षा रखता है । सत्य को भ्रामक शब्दों के आवरण में छुपाए रखने का समय समाप्त हो चुका है । यह हम जितना जल्दी समझेंगे, उतना ही ठीक होगा ।
सितम्बर - १९८७
(४६७)
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