Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 223
________________ भारतीय संस्कृति का कलंक : सती प्रथा भारतीय संस्कृति एक अद्वितीय निर्मल एवं धवल संस्कृति है । विश्व-मंगल की दिशा में उसकी उदात्त भावनाएँ विश्व-जगत् में सुप्रसिद्ध हैं । समग्र प्राणि-जगत् को उसने बन्धु भाव से देखने और उसके प्रति सद् व्यवहार करने की एक विशाल दृष्टि दी है। उसका यह उदात्त घोष है- “ बान्धवाः प्राणिनः सर्वे" इसका परमार्थ है- सभी प्राणी बन्धु जन हैं, स्नेही मित्र जन हैं, उन्हें किसी भी रूप में, किसी भी प्रकार का हानीकारक दु:ख एवं कष्ट नहीं दिया . जाए । भारतीय धर्म-परम्पराओं में हर आत्मा में अन्ततोगत्वा परमात्म-भाव का ही दर्शन किया है । यह सब-कुछ उज्ज्वल है एवं ग्राह्य है । परन्तु, हमारी इस निर्मल संस्कृति पर काल-दोष के कारण लगे हुए कलंक के काले धब्बे भी कुछ कम नहीं हैं । एक ओर समग्र मानव-जाति मनु की संतान कही जाती है । अत: यह एक पारस्परिक पारिवारिक भावना का दिव्य रूप है, किन्तु दूसरी ओर यह भी कलंकित परम्परा रही है कि सेवा कर्म-रत होते हुए भी शूद्र नीच है, अस्पर्श्य है। उसको तो क्या छूना, यदि उसकी छाया तक का स्पर्श हो जाए, तो उच्च वर्णता के अभिमानी अभिजात वर्ग के लोग अपवित्र हो जाते हैं, और उन्हें पुनः शुद्धि के लिए सवस्त्र स्नान करना चाहिए । यह कितनी परस्पर विरुद्ध वचन-भंगावलि है- " वदतो व्याघात् ।” देवी-देवताओं की पूजा का विधान भी अनेक विचारहीन धाराओं में बह बहकर इतना दूषित हो गया है कि उसके कथन-श्रवण से हर किसी विचारशील व्यक्ति का मस्तक लज्जा से अवनत हो जाता है । बंगाल में कालीपूजा से सम्बन्धित मूक पशुओं की नृशंस हत्या तो जग जाहिर है ही, किन्तु अन्यत्र भी इसका भयंकर नग्न रूप है | बिहार प्रदेश के मुंगेर खण्ड में एक देवी है, (४७४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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