Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 229
________________ भारत सरकार तथा भारतीय समग्र जन-समाज से भी मेरा यही कहना है कि विवेक मूलक विचार-धारा के द्वारा सर्व साधारण जनता को अन्ध-विश्वासों से मुक्त किया जाए । सत्तापक्ष हो या प्रतिपक्ष सभी का कर्तव्य है कि वह कुर्सी की अंधी लड़ाई छोड़कर भारतीय जन-चेतना को धार्मिक-सामाजिक आदि सभी प्रकार के अंध-विश्वासों एवं रूढ़िवादों से मुक्त करने की दिशा में सक्षम कदम उठाएँ । सभी प्रकार के भ्रष्टाचारों का मूल अंधविश्वास है । भले ही वह किसी भी रूप में हो । जब तक अंधविश्वास का यह सघन होता हुआ काला अँधेरा दूर न होगा, तब तक सही स्वतन्त्रता एवं कल्याणकारी न्याय की स्थापना न होगी तथा अन्याय एवं भ्रष्टाचार का उन्मूलन कथमपि संभव नहीं है । अज्ञान सब पापों की जड़ है । श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में ठीक ही कहा है“अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः भगवद् गीता, ५, १५ अज्ञान से जब ज्ञान आच्छादित हो जाता है, तो व्यक्ति व्यामोह ग्रस्त हो जाते हैं । - श्रमण भगवान महावीर भी कहते हैं " अन्नाणी किं काही, किंवा नाही सेय-पावगं" दशवैकालिक, ४, अज्ञानी व्यक्ति क्या कर पाएगा ? उसे श्रेय तथा अश्रेय का अर्थात् पुण्य और पाप कर्म का किस प्रकार समुचित एवं यथार्थ परिबोध हो सकेगा ? नवम्बर १९८७ " Jain Education International मैंने यह लेख शारीरिक अस्वस्थता के क्षणों में लिखाया है । मेरी अन्तर्वेदना ने मुझे बाधित कर दिया कि कुछ भी हो अन्तर्मन के अपने स्पष्ट उद्गार व्यक्त कर ही दूँ । यह चर्चा वर्तमान काल की एक रूपकुंवर के अग्नि दाह से ही सम्बन्धित नहीं है, युग-युग से लाखों रूपकुंवर जैसी नारियाँ जीवित ही अग्नि में जलकर भस्म होती आई हैं । भगवान जाने यह पवित्र धर्म-परम्परा के नाम पर अंधविश्वास की जघन्य परम्परा कब अपना अन्तिम किनारा लेगी । सच्चिदानन्द परम चैतन्य भगवत् तत्त्व के श्रीचरणों में अभ्यर्थना है कि मानव जाति को यथोचित सन्मति प्राप्त हो और वह शीघ्र ही नारी के जीवित अग्निदाह की अमानवीय परम्परा सती प्रथा और उसके जैसे अन्य अनेक अंध-विश्वासों से परिमुक्त हो । (४८०) o For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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