Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 234
________________ -प्राचीन आचार्यों ने जो व्यवस्था-परम्पराएँ निश्चित की हैं, वे विचार एवं विवेक की कसौटी पर क्या समीचीन सिद्ध होती हैं ? यदि समीचीन सिद्ध होती हैं, तो हम उन्हें समीचीनता के नाम पर मान सकते हैं, न कि प्राचीनता के नाम पर | यदि वे समीचीन सिद्ध नहीं होती हैं, तो मैं केवल मृत-पुरुषों के मात्र अर्थहीन गौरव को ढोने के लिए पैदा नहीं हुआ हूँ | मेरी इस सत्यवादिता के कारण यदि कोई मेरे विरोधी बनते हैं, तो बने, मुझको इसकी चिन्ता नहीं | -आचार्य सिद्धसेन दिवाकर गतं गतं नैव पुनर्निवर्तते । -चला गया, सो चला गया । वह फिर किसी भी तरह वापस लौट कर नहीं आने वाला है । -बौद्धाचार्य अश्वघोष दैवे पुरुषकारे च लोकोऽयं सम्प्रतिष्ठितः । तत्र दैवं तु विधिना कालयुक्तेन लभ्यते ।। -महर्षि व्यास, महाभारत - यह संसार दैव और पुरुषार्थ पर प्रतिष्ठित आधारित है । इनमें दैव तभी सफल होता है, जब समय पर उद्योग किया जाए। पुराणमित्येव ना साधु सर्वं, न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम् । सन्त: परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते, मूढः परप्रत्ययनेय बुद्धिः ।। –महाकवि कालीदास - न सब कुछ पुराना अच्छा है और न सब-कुछ नया ही । बुद्धिमान सज्जन अपने चिन्तन की कसौटी पर परख कर ही अच्छे या बुरे का निर्णय करते हैं और देश-कालानुरूप, जो अच्छा है, उसे अपना लेते हैं और बुरे का परित्याग कर देते हैं । किन्तु मूढ़ मनुष्य बिना कुछ परीक्षा किए अपनी अंध बुद्धि को दूसरों के अविचारित विश्वासों की पिछलग्गु बना देते हैं । जनवरी १९८८ (४८५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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