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२६ जनवरी साध्वी श्री चन्दनाश्रीजी का जन्म दिन है । आज वे अपने जीवन के पचास वर्ष पूर्ण कर ५१ वें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं । और, सौभाग्य से भारतीय संविधान को भी २६ जनवरी १९५० को लागू किया गया और भारत को गणतन्त्र उद्घोषित किया गया । इस ऐतिहासिक पावन - प्रसंग पर मैंने परम्पराओं की लकीर से हट कर चन्दनाश्रीजी के लिए आचार्य पद की उद्घोषणा की आलोचना तो होगी, पर उससे डरना नहीं है और न शर्माना है। सत्य को सत्य के रूप में स्वीकार करना और उसका दृढता से समर्थन करना है ।
आगम में उल्लेख है- एक महान नारी भगवती मल्ली तीर्थंकर हो गई। आगम की इस घटना को मानना पड़ा, उसे भगवती भी कहा, परन्तु अछेरा - आश्चर्यकारी अर्थात् अनहोनी घटना में गिन लिया । अछेरा अर्थात् अनहोनी हो गई । इससे बढकर और मृत चिन्तन क्या होगा ? वे धर्मगुरु लोक-अपवाद से डर गए । इतिहास में वह तीर्थंकर हो गई और भगवती भी कह दिया, लेकिन इसके साथ-साथ थोड़ा सा घूँघट भी डाल दिया कि ऐसा होना तो नहीं चाहिए था, पर अछेरा हो गया |
श्रमण भगवान महावीर पर गौशालक ने आक्रमण कर दिया । तेजो लेश्या छोड़ दी महावीर पर । झट अछेरा मान लिया उसे । एक ओर कहते हैं कि अरहन्त अवस्था में चार कर्म रहते हैं, उनमें वेदनीय कर्म भी एक है । साता और असातावेदनीय कर्म का उदय है, तो आक्रमण हो गया, रोगाक्रान्त भी हो गए, इसमें अछेरा - आश्चर्य किस बात का ? एक ओर वेदनीय कर्म का उदय भी मानना, परीषह भी मानना और दूसरी ओर उसे अछेरा कहना, यह दुहरी भाषा कायर एवं कमजोर मन के व्यक्ति बोलते हैं । मैं दुहरी भाषा बोलना पसन्द नहीं करता । जो सत्य है, वह सत्य है, उसे अछेरा या और कुछ कह कर छुपाना क्यों ?
यह चुनौती नहीं चिन्तन का संघर्ष है । चिन्तन का संघर्ष चले, घर्षण हो, तो उसमें से विद्युत् पैदा होगी । चिन्तन में चमक आएगी, ज्योति प्रज्वलित होगी ।
आप लोगों ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । इस मरुभूमि में अभावग्रस्त प्रजा है, उनमें भगवान महावीर के श्रावकों की रक्त की धारा के भी अनेक
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