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दुष्कर्म है । साथ ही छल-कपट और असत्य से भी अपने को बचाए रखना चाहिए।
लज्जा-दया-संयम-बंभचेरं, कल्याणभगिस्स विसोहिठाणं ।
- लज्जा, दया, संयम और ब्रह्मचर्य ( काम वासना से विरक्ति) उक्त चार बातें पवित्र आत्मा के लिए आत्म-विशुद्धि के हेतु हैं ।
- दशवै. ९,१,१३
संविभागी न हु तस्स भोक्खो ।
- दशवै. ९,२,२३
- जो व्यक्ति अपने प्राप्त साधनों का अपने सहयोगियों एवं पीडित जनता में सम्यक्-वितरण नहीं करता, वह कर्म - बन्धनों से मुक्त नहीं हो सकता ।
समवायांग सूत्र में सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित अनेक ज्योतिर्मय सूत्र हैं । हम यहाँ संक्षेप दृष्टि के कारण तेतीसवें समवाय के आशातना प्रकरण के कुछ अंशों का उल्लेख कर रहे हैं । लेख काफी लम्बा होता जा रहा है, अतः मूल सूत्र न देकर मात्र भावार्थ अंकित करना ही उचित समझा है
१. अपने बड़ों के अति निकट से सट कर नहीं चलना चाहिए । १
२. अपने बड़ों के आगे नहीं चलना चाहिए। क्योंकि इससे बड़ों की गौणता एवं अपनी प्रमुखता अभिव्यक्त होती है । २
३. अपने बड़ों के आगे पथअवरुद्ध करने के रूप में खड़ा भी नहीं होना चाहिए । इसी रूप में गुरुजनों के पास बैठने में भी इसी तरह का विवेक रखना चाहिए । ४ से ६
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४. अपने गुरुजन किसी से बात कर रहे हों, तो बीच-बीच में पहले बोलने का प्रयास करना उचित नहीं है । १२
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५. अपने गुरुजनों के साथ भोजन करते समय उत्तम स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों को जल्दी-जल्दी एवं बड़े-बड़े ग्रासों से खाना यह गुरुजनों की अवज्ञा है ।
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