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समागत नव वर्ष : स्वागतम्
पुराना वर्ष जीर्ण-शीर्ण होकर चला गया है, महाकाल के प्रवाह में । १९८७ का एक समय का जीवन्त वर्ष अब पूर्णतया मृत होकर सदा-सर्वदा के लिए बह गया है | अब वह कदापि लौटकर नहीं आनेवाला है ।
महाप्रभु भगवान महावीर ने कहा था इसी सन्दर्भ में" जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई "
-जो दिन-रात बीत चुके हैं, वे बीत ही चुके हैं, फिर वापस लौटकर नहीं आनेवाले हैं। अब तो नया वर्ष जन्म ले चुका है । इसके महान अस्तित्व में तुम्हें जीना है । अत: इस नए वर्ष में जीवन के लिए पुरातन का मोह छोड़ देना है । विगत के वर्ष के, जो उदात्त प्रेरणाप्रद वर्तमान एवं भविष्य के लिए उपयोगी अनुभव जीवित रह गए हैं, उनको तो स्वागत-गान के साथ नए वर्ष के नए जीवन में संमिश्रित कर दो, पूर्णतया मिला दो, एकमेक कर दो । नए के साथ ये भी नए ही रहेंगे, और नव-जीवन के निर्माण के लिए काम आएंगे ।
यह संसार है | संसार अर्थात् संसरणशील, निरन्तर गतिशील | यहाँ खड़ा नहीं रहा जा सकता । अपनी चेतना को, या तो आगे बढ़ाना होगा, या पीछे लौटाना होगा | लौटाने का कुछ अर्थ नहीं है । मृत-क्षणों के साथ पड़ें रहने में क्या प्राप्त होनेवाला है ।
__ जानते हो, शूरवीर और कायर-इन दोनों में क्या अन्तर होता है ? जीवन के अभिनव संग्राम में शूरवीर का कदम अपराजित हुंकार के साथ भविष्य की ओर आगे बढ़ना है और कायर का कदम निराशा के हाहाकार के साथ पीछे की ओर लौटना है । बस, इस आगे-पीछे के एक कदम से ही वीर और कायर की परीक्षा हो जाती है ।
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