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महाभारत की विदुला को कोई कैसे भूल सकता है । वह अपने सुखासक्त आलसी पुत्र को राष्ट्र की सुरक्षा के हेतु उद्बोधन देती है, तो वस्तुतः मातृत्व की दिव्य अन्तर्-भावना को भारतीय इतिहास के पृष्ठों पर वज्रांकित कर देती है । वह कहती है- " तू राष्ट्र-रक्षा से मुख मोड़कर घर के कोने में यदि दीर्घ जीवी भी रहा, तो उस दीर्घ जीवन का क्या अर्थ है ? राष्ट्र की रक्षा के हेतु आक्रमणकारी शत्रुओं को पराजित करते हुए, मातृभूमि की बलिवेदी पर अल्प-काल में ही अपने प्राणों की बलि दे देता है, तो वह तेरा भौतिक दृष्टि से अल्प-जीवन भी यशस्वी जीवन के रूप में अजर-अमर रहेगा ।" उस वीर माता का आज भी यह वचन भारत माँ के सपूतों को चिर-काल से प्रेरणा देता आ रहा है- " मुहूर्तं ज्वलितं श्रेये , न च धूमायितं चिरं " कुछ क्षणों का प्रदीप्त उदात्त जीवन श्रेयस्कर है, किन्तु स्वार्थों की कड़वी धूम फैलाते हुए गीले काष्ठ के समान लम्बा जीवन भी किस काम का | यदि आज भी इन सोलह अक्षरों पर ही अपने जीवन को केन्द्रित करते हुए कर्म-क्षेत्र में गतिशील रहा जाए, तो भारत सर्वतोमुखी उन्नति एवं उत्थान के शिखरों पर आरोहण कर सकता है ।
महाश्रमण भगवान महावीर एवं तथागत बुद्ध-काल की मातृ-शक्ति भी कितनी अधिक महान रही है । उक्त काल की आर्य चन्दना, मृगावती, तथा राजकुमारी जयन्ती और विशाखा आदि पूज्य नारियाँ हमारे इतिहास की ज्योतिर्मयी तारिकाएँ हैं | आर्य चन्दना का जीवन कर्म, ज्ञान और भक्ति-योग की वह पवित्र त्रिवेणी है, जो युग-युगान्तर तक जन-जन के लिए अखण्ड प्रेरणा-स्रोत के रूप में प्रवाहित होता रहेगा । वह प्रारम्भ में पुष्षशय्या पर पालित-पोषित, प्रियातिप्रिय अनुपम सुन्दरी राजकुमारी है । वही योगानुयोग से एक श्रेष्ठी के यहाँ गृह-दासी भी हो जाती है । घर के छोटे-बड़े सभी काम प्रसन्नता से हँसते-खिलते वह इस प्रकार करती है कि पता ही नहीं चलता कि वह कभी एक दिन राजकुमारी भी थी। वह अतीत को एक ओर किनारे पर रखकर प्रारब्ध से प्राप्त वर्तमान में आकण्ठ रस-मग्न हो ज तो है | यह है, वह जीवन, जो कर्म-योग की कभी न बुझने वाली दिव्य-ज्योति है । भगवान महावीर की यह प्रथम शिष्या है, जिसने आगे चलकर भगवान महावीर द्वारा संस्थापित साध्वी संघ की छत्तीस हजार साध्वियों का कुशल नेतृत्व किया है । यह वह श्रमणी-संघ था, जिसमें मगधराज श्रेणिक जैसे सम्राटों की अनेक उच्चासनस्थ रानियाँ थीं । द्वार-द्वार भिक्षा माँगने वाली दरिद्र भिखारिनियाँ भी थीं । तत्कालीन वर्ण व्यवस्था के रूप में सर्वातिशायी ब्राह्मण वंश की अनेक माताएँ,
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