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मृत्यु राक्षसी का नंगा नाच हो रहा है | एकेन्द्रिय जीवों तक की रक्षा पर जरूरत से अधिक शोर मचानेवाले, आलू तथा प्याज आदि कंद-मूल के आहार पर अभक्ष्यवाद का ताण्डव-नृत्य करने वाले लोग भी जब ऐसा कुकृत्य करते हैं, तो हमारे पवित्र धर्म का उन्नत मस्तक लज्जा से सहसा अवनत हो जाता है । यह अहिंसा धर्म पर, इतना ही नहीं, पवित्र भारतीय संस्कृति पर वह काला धब्बा लग रहा है, जिसे साफ करना मुश्किल है ।
___ मैं प्रस्तुत में लम्बी चर्चा नहीं करना चाहता | पापाचार की वार्ता भी अन्तर्मन को कलुषित कर देती है- “ कथाहि खलु पापानाम् अलमश्रेयसे ।" अश्रेयस् की यह पुरातन उक्ति असत्य नहीं है । अस्तु मैं चाहूँगा, हम अपने महान अतीत को न भूलें । जिस माँ की कुक्षि में जन्म लिया है, उस मातृ-जाति के गौरव को अपमानित करके अपने को कलंकित न करें । माता, भगिनी, पुत्री, पत्नी, पुत्र-वधू आदि अनेक दिव्य रूपों में मातृ-जाति की आदर्श भूमिकाएँ हैं, उन सभी दिव्य रूपों का योग्य सम्मान करने में ही हमारा, हमारे धर्मों का, हमारी जाति और समाज का तथा महान राष्ट्र का महान गौरव है ।
जून १९८७
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