Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 206
________________ हर किसी सहृदय की दर्द भरी अन्तर्व्यथा आज ७ जुलाई १९८७ का प्रात:काल है | एक बहुत ही अशुभ एक भयंकर राक्षसी नर-संहार लीला का दुर्वृत्त सुनने में आया है । यह अश्रव्य कानों में श्रव्य हुआ, तो सारा शरीर सहसा उत्कम्पित हो उठा । हृदय का कण-कण जलने लगा । आँखों के आगे अँधेरा-सा छा गया, यह क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है ? कौन कर रहा है ? और, कौन करा रहा है ? यदि कोई वास्तव में इन्सान है और उसके तन में कहीं सही इन्सान का सही हृदय है, वह तो ऐसा कुछ नहीं कर सकता है और न करा ही सकता है । यह दुर्वार्ता है, सर्वथा अश्रव्य जैसी दुर्वार्ता है । गत रात्रि हरियाणा रोडवेज की एक बस चण्डीगढ़ से हरियाणा की ओर जा रही थी। कुछ मानव तनधारी दानव लोगों ने निरपराध एवं निर्दोष ४० के लगभग लोगों को गोलियों से भून डाला ।' कहने को वे सिक्ख कहे जाते हैं और गुरु-भक्त भी । किन्तु, मूल में न वे सिक्ख हैं और न गुरु-भक्त । यदि कोई वास्तव में गुरु है, तो वह इस प्रकार के हत्यारों को अपना शिष्य कहते शर्माएगा और लजाएगा तथा अन्तर्मन में कितनी भीषण पीड़ा की अनुभूति करेगा कि मेरे नाम से यह जो कुछ भी हो रहा है, वह इतना दुर्नाम दुराचार हो रहा है कि धरती माँ फट जाए, तो मैं जिन्दा ही उसके गर्भ में सदा के लिए समा जाऊँ । बेचारे, निर्दोष यात्रियों को क्या लेना-देना था, उन हत्यारों के राजनैतिक या साम्प्रदायिक दुराग्रहों से | सुना है, कुछ निर्दोष बच्चे भी भुन दिए गए । उन अंकुरित होती कोमल कलियों को क्या सोच-समझ कर मौत के घाट उतारा, मैं तो कुछ समझ नहीं पाया | कोई वंश परम्परानुगत हत्यारा भी १. ७ जुलाई की रात्रि को फतुहा के निकट हिसार जा रही बस को तथा दिल्ली से आ रही एक बस को रोककर ३२ व्यक्तियों को गोलियों से भून डाला और अनेक व्यक्तियों को घायल कर दिया। दो दिन में ७२ व्यक्तियों की हत्याएँ कर दी गई। (४५७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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